मेरा इश्क़ जो गुनाह है,कफ़्फ़ारा न हो
आज दीद में नमी है,कल दुबारा न हो
बातों ही बातों में चुरा लेते हो दिल
चुरा लो मगर मेरे अलावा न हो
सुना है की इश्क़ अधूरा रहा है
मै रहूँ,तुम रहो,कहीं हमारा न हो
एक लम्बी सहर है मेरी उमर में
साथ हो अगर तुम,उजारा न हो
तब तो उठाओगे मुझको जमीं से
गिरूँ इस कदर कोई सहारा न हो
करता हूँ नफरत अपनी शकल से
यूँ तेरे सिवा कोई प्यारा न हो
'राज' नशा आदत है जरूरत नहीं
ऐसी तलब हो तेरी,गुजारा न हो
अंकुश
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