तलाश...
न तो कारवाँ की तलाश है, न तो हमसफ़र की तलाश है,
मेरे शौक ए खाना खराब को तेरी रहगुज़र की तलाश है...
खूबसूरत कव्वाली की खूबसूरत पंक्तियाँ एक बार ज़ुबान पर चढ़ जाएँ, बस फिर उतरने का नाम कहाँ लेती हैं! एक-एक पंक्ति इतनी अच्छी है, लगता हैं बस सुनते ही रहो। पूरी कव्वाली भले ही इश्क की तलाश है लेकिन इस कव्वाली ने 'तलाश' शब्द की खूबसूरती बढ़ा दी। विशेषकर ये पंक्ति..
'तेरा इश्क है मेरी आबरू, तेरा इश्क हे मेरी आबरू,
तेरा इश्क में कैसे छोड़ दूं, मेरी उम्र भर की तलाश है...'
'उम्र भर की तलाश' ! क्या सचमुच यही उम्र भर की तलाश है? इसके आगे क्या कोई इच्छा नहीं, कोई आवश्यकता नहीं? कोई तलाश नहीं,सब तलाश खत्म?
'तलाश' ... सच तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक जीव सदैव किसी न किसी तलाश में रहता है। ठहरता ही कब है? खैर ठहर जाएगा तो भी खाली बैठकर करेगा भी क्या? कोई रोजी-रोटी की तलाश में तो कोई सुकून की तलाश में रहता है। किसीको ईश्वर की तलाश है तो कोई सत्य की तलाश में रहता है। 'महात्मा बुद्ध भी सत्य की तलाश में निकल गए थे एक सत्य पीछे छोड़कर, उस सत्य को छोड़कर जिसका तेज़ उनके सत्य से कहीं अधिक तेज़स्वी था। सत्य की तलाश में निकले और सत्य पा भी लिया, लेकिन जिस परिवार को छोड़कर आए थे फिर भी एक दिन वहाँ पहुँच गए। सबकुछ त्यागने वाले महात्मा बुद्ध की आँखे तलाशती रहीं पीछे छोड़ आए उस सत्य के सत्य को जिस सत्य का वो सामना नहीं कर पाए, जिस तेज़ से उनकी आँखे चुधिया गई और सामने उस तेज़ के सत्य का सामना न कर पाऐ जिसे तलाशने वे वापस आए थे, वह था 'यशोधरा का सत्य'...
शिशु के रूप में सदैव माँ के आँचल को तलाशता है, विद्यालय में जाना आरंभ करता हो तो दरवाज़े और गेट पर टकटकी लगाए माँ-बाप को तलाशता है। बचपन में खिलौने तलाशता है, नए-नए खेल तलाशता है, किशोरावस्था में संगी-साथी तलाशता है तो युवावस्था में जीवनयापन के तरीके तलाशता है, हमसफ़र तलाशता है और ये सब मिलते ही लगता है कि ज़िंदगी भर की तलाश पूरी हो गई लेकिन 'जीवन' और 'तलाश का तो चोली-दामन का साथ है, जब तक जीवन है तब तक "तलाश' जारी रहती है। फिर निकल पड़ता है बच्चों की खुशी तलाशने, उनके लिए अच्छे स्कूल की तलाश में, उनको सुख-सुविधा मुहैया कराने की तलाश में, बच्चों के लिए उनका जीवनसाथी तलाशने में और कभी तलाशता सूकून के पल दो पल और इनकी तलाश में ही दौड़ता रहता है ताउम्र!
तलाश' के बीच यह भूल जाता है कि कोई उसे भी तलाश रहा है, आरंभ से ही, जब से वह पैदा हुआ तभी से उसकी मौत साए की तरह उसके साथ है और वक्त आने पर उसे तलाश ही लेती है। लेकिन अंत समय जब आता है तो भी आँखे तलाशती ही रहती, एक बार सभी अपनों को अपने पास देखने की चाह में। और किसीके चले जाने के बाद हमारी आँखे ज़िंदगी भर उसे तलाशती रहती हैं, ये पता होने के बाद भी कि वह कभी लौट कर नहीं आएगा...
25 जून, 2021 सीमा शर्मा
©Seema Sharma
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