Seema Sharma

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इलाज शरारती बालक का.... पुराना किस्सा है। एक बालक बेहद शरारती था। ये समझ लीजिए बदमाश बच्चा था। बदमाश भी इतना कि कितना ही कुछ कह लो, उसने किसीकी भी बात माननी ही नहीं थी, सो नहीं मानता था। उसका रोज का काम था आते-जाते व्यक्ति को पत्थर मारना, पत्थर मारता और फिर जोर से हँसता। कोई पकड़ने का प्रयास करता तो भाग जाता। सब परेशान थे। इसी प्रकार एक दिन वह बालक अपने इसी प्रिय खेल में लगा था। एक व्यक्ति को सामने से आते देख, पत्थर फेंका और वह पत्थर उस व्यक्ति को जा लगा। उस व्यक्ति ने उस बालक को जरा भी बुरा-भला नहीं कहा, उल्टा मुस्कुराते हुए अपनी जेब में हाथ डाला और एक चवन्नी बाहर निकाली। फिर प्यार से अपने पास बुलाया। बालक अचंभित भी था और चवन्नी का लालच भी, सो चला गया। उस व्यक्ति ने बालक के हाथ में चवन्नी थमाई। बालक हैरान-परेशान कि सब तो गालियाँ देते हैं और इस व्यक्ति ने मुझे न मारा न पीटा न गाली दी उल्टे चवन्नी और थमा दी। अचंभित बालक ने प्रश्नसूचक निगाह से जैसे ही उस व्यक्ति को देखा तो व्यक्ति ने बालक से कहा कि तुमने बहुत अच्छा काम किया है इसलिए यह तुम्हारा ईनाम है। बालक ने कहा अच्छा इसका मतलब ऐसा करने से चवन्नी मिलती है। व्यक्ति ने हामी भरते हुए कहा, 'बिल्कुल' ! एक काम करना,"पीछे एक व्यक्ति आ रहा है, उसे पत्थर अवश्य मारना, वह भी तुम्हें चवन्नी देगै, बच्चे ने कहा,"सच्ची! व्यक्ति ने कहा, "हाँ" , और वहाँ से चला गया। शरारत का मज़ा और चवन्नी की आस में बालक ने जैसे ही पीछे आते व्यक्ति फर पत्थर फेंका, वह पत्थर सीधे उसके माथे पर लगा। पत्थर मारने के बाद बालक उस व्यक्ति के पास पहुंचा और बोला, "मेरी चवन्नी! व्यक्ति ने बालक से पूछा, चवन्नी? बालक ने कहा, हाँ! मैंनें अभी जो आपको पत्थर मारा, उसके बदले चवन्नी दो मेरी"। दरअसल वह व्यक्ति एक पहलवान था। उसने उस बच्चे की तबीयत से कुटाई की और कहा, "एक तो पत्थर मारता है और ऊपर से च चवन्नी माँगता हैं, ले ये ले चवन्नी! उसके बाद से उस बालक ने कान पकड़ लिए कि आगे से कोई बदमाशी नहीं करेगा। आज उसे अच्छा सबक मिल चुका था.... 26 जून, 2021 सीमा शर्मा 'प्रहरी' ©Seema Sharma

#ज़िन्दगी #Mic  इलाज शरारती बालक का....
        पुराना किस्सा है। एक बालक बेहद शरारती था। ये समझ लीजिए बदमाश बच्चा था। बदमाश भी इतना कि कितना ही कुछ कह लो, उसने किसीकी भी बात माननी ही नहीं थी, सो नहीं मानता था। उसका रोज का काम था आते-जाते व्यक्ति को पत्थर मारना, पत्थर मारता और फिर जोर से हँसता। कोई पकड़ने का प्रयास करता तो भाग जाता। सब परेशान थे।
     इसी प्रकार एक दिन वह बालक अपने इसी प्रिय खेल में लगा था। एक व्यक्ति को सामने से आते देख, पत्थर फेंका और वह पत्थर उस व्यक्ति को जा लगा। उस व्यक्ति ने उस बालक को जरा भी बुरा-भला नहीं कहा, उल्टा मुस्कुराते हुए अपनी जेब में हाथ डाला और एक चवन्नी बाहर निकाली। फिर प्यार से अपने पास बुलाया। बालक अचंभित भी था और चवन्नी का लालच भी, सो चला गया। उस व्यक्ति ने बालक के हाथ में चवन्नी थमाई। बालक हैरान-परेशान कि सब तो गालियाँ देते हैं और इस व्यक्ति ने मुझे न मारा न पीटा न गाली दी उल्टे चवन्नी और थमा दी।
                अचंभित बालक ने प्रश्नसूचक निगाह से जैसे ही उस व्यक्ति को देखा तो व्यक्ति ने बालक से कहा कि तुमने बहुत अच्छा काम किया है इसलिए यह तुम्हारा ईनाम है। बालक ने कहा अच्छा इसका मतलब ऐसा करने से चवन्नी मिलती है। व्यक्ति ने हामी भरते हुए कहा, 'बिल्कुल' ! एक काम करना,"पीछे एक व्यक्ति आ रहा है, उसे पत्थर अवश्य मारना, वह भी तुम्हें चवन्नी देगै, बच्चे ने कहा,"सच्ची! व्यक्ति ने कहा, "हाँ" , और वहाँ से चला गया। शरारत का मज़ा और चवन्नी की आस में बालक ने जैसे ही पीछे आते व्यक्ति फर पत्थर फेंका, वह पत्थर सीधे उसके माथे पर लगा। पत्थर मारने के बाद बालक उस व्यक्ति के पास पहुंचा और बोला, "मेरी चवन्नी! व्यक्ति ने बालक से पूछा, चवन्नी? बालक ने कहा, हाँ! मैंनें अभी जो आपको पत्थर मारा, उसके बदले चवन्नी दो मेरी"। 
      दरअसल वह व्यक्ति एक पहलवान था। उसने उस बच्चे की तबीयत से कुटाई की और कहा, "एक तो पत्थर मारता है और ऊपर से च चवन्नी माँगता हैं, ले ये ले चवन्नी! उसके बाद से उस बालक ने कान पकड़ लिए कि आगे से कोई बदमाशी नहीं करेगा। आज उसे अच्छा सबक मिल चुका था....
26 जून, 2021            सीमा शर्मा 'प्रहरी'

©Seema Sharma

#Mic

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तलाश... न तो कारवाँ की तलाश है, न तो हमसफ़र की तलाश है, मेरे शौक ए खाना खराब को तेरी रहगुज़र की तलाश है... खूबसूरत कव्वाली की खूबसूरत पंक्तियाँ एक बार ज़ुबान पर चढ़ जाएँ, बस फिर उतरने का नाम कहाँ लेती हैं! एक-एक पंक्ति इतनी अच्छी है, लगता हैं बस सुनते ही रहो। पूरी कव्वाली भले ही इश्क की तलाश है लेकिन इस कव्वाली ने 'तलाश' शब्द की खूबसूरती बढ़ा दी। विशेषकर ये पंक्ति.. 'तेरा इश्क है मेरी आबरू, तेरा इश्क हे मेरी आबरू, तेरा इश्क में कैसे छोड़ दूं, मेरी उम्र भर की तलाश है...' 'उम्र भर की तलाश' ! क्या सचमुच यही उम्र भर की तलाश है? इसके आगे क्या कोई इच्छा नहीं, कोई आवश्यकता नहीं? कोई तलाश नहीं,सब तलाश खत्म? 'तलाश' ... सच तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक जीव सदैव किसी न किसी तलाश में रहता है। ठहरता ही कब है? खैर ठहर जाएगा तो भी खाली बैठकर करेगा भी क्या? कोई रोजी-रोटी की तलाश में तो कोई सुकून की तलाश में रहता है। किसीको ईश्वर की तलाश है तो कोई सत्य की तलाश में रहता है। 'महात्मा बुद्ध भी सत्य की तलाश में निकल गए थे एक सत्य पीछे छोड़कर, उस सत्य को छोड़कर जिसका तेज़ उनके सत्य से कहीं अधिक तेज़स्वी था। सत्य की तलाश में निकले और सत्य पा भी लिया, लेकिन जिस परिवार को छोड़कर आए थे फिर भी एक दिन वहाँ पहुँच गए। सबकुछ त्यागने वाले महात्मा बुद्ध की आँखे तलाशती रहीं पीछे छोड़ आए उस सत्य के सत्य को जिस सत्य का वो सामना नहीं कर पाए, जिस तेज़ से उनकी आँखे चुधिया गई और सामने उस तेज़ के सत्य का सामना न कर पाऐ जिसे तलाशने वे वापस आए थे, वह था 'यशोधरा का सत्य'... शिशु के रूप में सदैव माँ के आँचल को तलाशता है, विद्यालय में जाना आरंभ करता हो तो दरवाज़े और गेट पर टकटकी लगाए माँ-बाप को तलाशता है। बचपन में खिलौने तलाशता है, नए-नए खेल तलाशता है, किशोरावस्था में संगी-साथी तलाशता है तो युवावस्था में जीवनयापन के तरीके तलाशता है, हमसफ़र तलाशता है और ये सब मिलते ही लगता है कि ज़िंदगी भर की तलाश पूरी हो गई लेकिन 'जीवन' और 'तलाश का तो चोली-दामन का साथ है, जब तक जीवन है तब तक "तलाश' जारी रहती है। फिर निकल पड़ता है बच्चों की खुशी तलाशने, उनके लिए अच्छे स्कूल की तलाश में, उनको सुख-सुविधा मुहैया कराने की तलाश में, बच्चों के लिए उनका जीवनसाथी तलाशने में और कभी तलाशता सूकून के पल दो पल और इनकी तलाश में ही दौड़ता रहता है ताउम्र! तलाश' के बीच यह भूल जाता है कि कोई उसे भी तलाश रहा है, आरंभ से ही, जब से वह पैदा हुआ तभी से उसकी मौत साए की तरह उसके साथ है और वक्त आने पर उसे तलाश ही लेती है। लेकिन अंत समय जब आता है तो भी आँखे तलाशती ही रहती, एक बार सभी अपनों को अपने पास देखने की चाह में। और किसीके चले जाने के बाद हमारी आँखे ज़िंदगी भर उसे तलाशती रहती हैं, ये पता होने के बाद भी कि वह कभी लौट कर नहीं आएगा... 25 जून, 2021 सीमा शर्मा ©Seema Sharma

#Mic  तलाश...
  न तो कारवाँ की तलाश है, न तो हमसफ़र की तलाश है,
मेरे शौक ए खाना खराब को तेरी रहगुज़र की तलाश है...
    खूबसूरत कव्वाली की खूबसूरत पंक्तियाँ एक बार ज़ुबान पर चढ़ जाएँ, बस फिर उतरने का नाम कहाँ लेती हैं! एक-एक पंक्ति इतनी अच्छी है, लगता हैं बस सुनते ही रहो। पूरी कव्वाली भले ही इश्क की तलाश है लेकिन इस कव्वाली ने 'तलाश' शब्द की खूबसूरती बढ़ा दी। विशेषकर ये पंक्ति..

'तेरा इश्क है मेरी आबरू, तेरा इश्क हे मेरी आबरू,
तेरा इश्क में कैसे छोड़ दूं, मेरी उम्र भर की तलाश है...'

'उम्र भर की तलाश' ! क्या सचमुच यही उम्र भर की तलाश है? इसके आगे क्या कोई इच्छा नहीं, कोई आवश्यकता नहीं? कोई तलाश नहीं,सब तलाश खत्म? 
   'तलाश' ...  सच तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक जीव सदैव किसी न किसी तलाश में रहता है। ठहरता ही कब है? खैर ठहर जाएगा तो भी खाली बैठकर करेगा भी क्या? कोई रोजी-रोटी की तलाश में तो कोई सुकून की  तलाश में रहता है। किसीको ईश्वर की तलाश है तो कोई सत्य की तलाश में रहता है। 'महात्मा बुद्ध भी सत्य की तलाश में निकल गए थे एक सत्य पीछे छोड़कर, उस सत्य को छोड़कर जिसका तेज़ उनके सत्य से कहीं अधिक तेज़स्वी था। सत्य की तलाश में निकले और सत्य पा भी लिया, लेकिन जिस परिवार को छोड़कर आए थे फिर भी एक दिन वहाँ पहुँच गए। सबकुछ त्यागने वाले महात्मा बुद्ध की आँखे तलाशती रहीं पीछे छोड़ आए उस सत्य के सत्य को जिस सत्य का वो सामना नहीं कर पाए, जिस तेज़ से उनकी आँखे चुधिया गई और सामने उस तेज़ के सत्य का सामना न कर पाऐ जिसे तलाशने वे वापस आए थे, वह था 'यशोधरा का सत्य'...

     शिशु के रूप में सदैव माँ के आँचल को तलाशता है, विद्यालय में जाना आरंभ करता हो तो दरवाज़े और गेट पर टकटकी लगाए माँ-बाप को तलाशता है। बचपन में खिलौने तलाशता है, नए-नए खेल तलाशता है, किशोरावस्था में संगी-साथी तलाशता है तो युवावस्था में जीवनयापन के तरीके तलाशता है, हमसफ़र तलाशता है और ये सब मिलते ही लगता है कि ज़िंदगी भर की तलाश पूरी हो गई लेकिन 'जीवन' और 'तलाश का तो चोली-दामन का साथ है, जब तक जीवन है तब तक "तलाश' जारी रहती है। फिर निकल पड़ता है बच्चों की खुशी तलाशने, उनके लिए अच्छे स्कूल की तलाश में, उनको सुख-सुविधा मुहैया कराने की तलाश में, बच्चों के लिए उनका जीवनसाथी तलाशने में और कभी तलाशता सूकून के पल दो पल और इनकी तलाश में ही दौड़ता रहता है ताउम्र! 
    तलाश' के बीच यह भूल जाता है कि कोई उसे भी तलाश रहा है, आरंभ से ही, जब से वह पैदा हुआ तभी से उसकी मौत साए की तरह उसके साथ है और वक्त आने पर उसे तलाश ही लेती है। लेकिन अंत समय जब आता है  तो भी आँखे तलाशती ही रहती, एक बार सभी अपनों को अपने पास देखने की चाह में। और किसीके चले जाने के बाद हमारी आँखे ज़िंदगी भर उसे तलाशती रहती हैं, ये पता होने के बाद भी कि वह कभी लौट कर नहीं आएगा...
25 जून, 2021                         सीमा शर्मा

©Seema Sharma

#Mic

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मुस्कुराते रहना ©Seema Sharma

 मुस्कुराते रहना

©Seema Sharma

मुस्कुराते रहना ©Seema Sharma

11 Love

यूं तो चलते हैं बहुत, साथ डगर में, लेकिन साथ देने वाला तो कोई विरला ही होता है... सीमा शर्मा, 'प्रहरी' ©Seema Sharma

#कोट्स #Mic  यूं तो चलते हैं बहुत, साथ डगर में,
लेकिन साथ देने वाला 
तो कोई विरला ही होता है...

        सीमा शर्मा, 'प्रहरी'

©Seema Sharma

#Mic

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योग का महत्व आज सातवाँ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। 'योग' शब्द संस्कृत के शब्द योग: से बना है। यूं तो योगसके कई अर्थ हैं लेकिन हम यहाँ जिस योग की बात कर रहे हैं उसका अर्थ व्यायाम से है। साधारण शब्दों में, योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम है। योग ही है जो न केवल आपको स्वास्थ्य देता है अपितु सत्य से भी परिचित कराता है। सत्य अर्थात तन, मन, और आध्यात्मिकता की वास्तविकता, सत्य अर्थात् ईश्वर को, इस ब्रह्मांड को समझना। सभी ऋषि-मुनि योग के आधार पर ही सत्य का पता करते थे। स्वस्थ एवं दीर्घायु रहते थे। योग एक विज्ञान है जो न केवल आपको स्वस्थ बनाता है अपितु आपके जीवन को आपकी सोच को संतुलित बनाता है। शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है। अंदरूनी सफाई करती है, न केवल शरीर की बल्कि मन व मस्तिष्क की भी। योग आपके शरीर से सभी दूषित व विषाक्त तत्वों को बाहर कर आपको निर्मलता, सौम्यता, वे तेज़ व ओज़ प्रदान करता है। योग के बल पर ही हमारे ऋषि व मुनियों ने इस ब्रह्मांड को समझा उसका विवरण हम तक पहुंचाया। जिस ब्रह्मांड को जानने के लिए नासा समेत सभी वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र बेहिसाब खर्च करके जो खोज करते हैं उनकी गणना योग के बल पर ही बहुत पहले हो चुकी थी। सच तो यही है कि हमारा मस्तिष्क ही ब्रह्मांड का प्रारूप है। कहते हैं योग के बल पर ही आप पूरा ब्रह्मांड घूम सकते हैं। बचपन में जब यह सब सुनती थी तो घोर आश्चर्य होता है कि क्या ऐसा भी होता है? बड़े होने पर सबकुछ धीरे-धीरे समझ आने लगा और विश्वास भी प्रगाढ़ होता गया। योग में बहुत शक्ति है और यह व्यक्ति को शक्ति प्रदान करता है। इसलिए आज से ही योग को अपनाएँ। 21 जून, 2021 सीमा शर्मा 'प्रहरी' ©Seema Sharma

#FathersDay  योग का महत्व
 आज सातवाँ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। 'योग' शब्द संस्कृत के शब्द योग: से बना है। यूं तो योगसके कई अर्थ हैं लेकिन हम यहाँ जिस योग की बात कर रहे हैं उसका अर्थ व्यायाम से है। साधारण शब्दों में, योग एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम है। योग ही है जो न केवल आपको स्वास्थ्य देता है अपितु सत्य से भी परिचित कराता है। सत्य अर्थात तन, मन, और आध्यात्मिकता की वास्तविकता, सत्य अर्थात् ईश्वर को, इस ब्रह्मांड को समझना। सभी ऋषि-मुनि योग के आधार पर ही सत्य का पता करते थे। स्वस्थ एवं दीर्घायु रहते थे। योग एक विज्ञान है जो न केवल आपको स्वस्थ बनाता है अपितु आपके जीवन को आपकी सोच को संतुलित बनाता है। शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है। अंदरूनी सफाई करती है, न केवल शरीर की बल्कि मन व मस्तिष्क की भी। योग आपके शरीर से सभी दूषित व विषाक्त तत्वों को बाहर कर आपको निर्मलता, सौम्यता, वे तेज़ व ओज़ प्रदान करता है।
               योग के बल पर ही हमारे ऋषि व मुनियों ने इस ब्रह्मांड को समझा उसका विवरण हम तक पहुंचाया। जिस ब्रह्मांड को जानने के लिए नासा समेत सभी वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र बेहिसाब खर्च करके जो खोज करते हैं उनकी गणना योग के बल पर ही बहुत पहले हो चुकी थी। सच तो यही है कि हमारा मस्तिष्क ही ब्रह्मांड का प्रारूप है। कहते हैं योग के बल पर ही आप पूरा ब्रह्मांड घूम सकते हैं। बचपन में जब यह सब सुनती थी तो घोर आश्चर्य होता है कि क्या ऐसा भी होता है? बड़े होने पर सबकुछ धीरे-धीरे समझ आने लगा और विश्वास भी प्रगाढ़ होता गया। योग में बहुत शक्ति है और यह व्यक्ति को शक्ति प्रदान करता है। इसलिए आज से ही योग को अपनाएँ।
21 जून, 2021            सीमा शर्मा 'प्रहरी'

©Seema Sharma

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कर्मो पर आधारित ©Seema Sharma

 कर्मो पर आधारित

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कर्मो पर आधारित ©Seema Sharma

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