दोनों के दो रस्ते थे ,मै बस पहुंचाने निकला था
वो पत्थर बनके निकली थी, मै ठोकर खाने निकला था
मै उसकी हर इक बातों पर, हौले हौले हंस देता था
लेकिन मेरी हर बातों पर ,उसका बस ताने निकला था
मै उसकी हंसी ठिठोली को ऩिज प्रेम कहानी कहता था
लेकिन वो मेरी कहानी से बस मन बहलाने निकला था
उसको कह देना अच्छा था मै प्यार बहुत ही करता हूं
उसकी डोली अब चली गई मै बस पछताने निकला था
वो दो पग मुझसे आगे था, मै कितना बडा़ अभागा था
वो जिसको खोकर निकला था, मै उसको पाने निकला था
मै रंग जमाने निकला था, वो रंग दिखाने निकला था
मै मौन सदा ही बना रहा, वो बस चिल्लाने निकला था |
@हेमंत कुमार
©Hemant Kumar
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