White सीता जी का मनन:
जब राम जी शिव के धनुष को उठाने के लिए पहुंचे, तब सीता जी का मन कई विचारों से व्याकुल था। उनके मन में एक ओर था राम जी का अद्वितीय व्यक्तित्व, जिनकी शक्ति और वीरता के बारे में उन्होंने बहुत सुना था, और दूसरी ओर था एक स्त्री का वह स्वाभाविक भय, जो अपने प्रियतम के लिए मन में आता है।
सीता जी, जो पहले से ही राम के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और प्रेम को महसूस कर रही थीं, इस क्षण में उनके मन में यह विचार आ रहे थे कि क्या राम जी उस धनुष को तोड़ पाएंगे? शिव का धनुष तो ऐसा था जिसे हजारों राजकुमारों और वीरों ने प्रयास किया, लेकिन वह टूट नहीं पाया।
फिर, एक और विचार उनके मन में आया – अगर राम जी यह धनुष तोड़ते हैं, तो क्या इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वे वही वीर होंगे, जिन्हें माता जानकी का वरदान प्राप्त होगा? यह विचार आते ही सीता जी का हृदय थोड़ी चिंता और थोड़ा गर्व से भर गया। वे जानती थीं कि यह परीक्षण केवल राम के लिए नहीं, बल्कि उनके और उनके परिवार के भविष्य के लिए भी एक निर्णायक क्षण होगा।
सीता जी की आंखों में एक आंसू आया, लेकिन उस आंसू में केवल भय का अहसास नहीं था, बल्कि उनके दिल में एक गहरी उम्मीद भी थी। वे जानती थीं कि जो भी होगा, वह राम के लिए ठीक होगा, और वे उनके साथ हर स्थिति में खड़ी रहेंगी। उनके प्रेम में कोई भी डर या संकोच नहीं था।
राम ने धनुष को उठा लिया और उसे तोड़ दिया। सीता जी के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई, और उनका दिल खुशी से भर उठा। वह जानती थीं कि राम की महिमा किसी भी सीमा से परे है। उस क्षण में उन्होंने यह भी महसूस किया कि भगवान राम का साथ ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है, और वह उनके साथ इस जीवन के हर चरण को साझा करेंगी।
यह प्रसंग न केवल सीता जी के भावनाओं की गहराई को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि प्रेम और विश्वास की शक्ति में कितनी स्थिरता और शक्ति हो सकती है, जो किसी भी संकट या परिस्थिति से परे होती है।
नितिन नन्दन
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©NiTiN NaNDaN
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