सूर्य सा जो तेज है, मस्तक पर तिलक विराजे। शूरवीरों की भांति गगनचुम्बी इरादे लिए प्रताप के चेतक सा जो भागे। मिट्टी से जो रंग दे लहू को ऐसा प्रताप चाहिए।
हस्त रेखा को बदल भाग्य को खुद लिख, ग्रहों नक्षत्रों की चाल भी बदल ही जानी चाहिए। कलयुगी जमाने में फिर कोई ऐसा ही पराक्रमी चाहिए। देखता है टकटकी लगाए जमाना। गर मुझे नहीं खैरात में कोई हमदर्दी चाहिए। पूरे संसार को पसंद है सौरभ। किसी के काम में किसी के नाम में हैं ये खुशबू की मिलावटें। कभी मंद मुस्कान के भरोसे भी जी लेना चाहिए।
- सौरभ शर्मा
©saurabh pandit
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