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मानवेन्द्र की कलम से
www.manvendrakikalamse.wordpress.com
Manvendra Pratap Singh Radhye
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मेरी मोह्हबत की किताब छपती गई और मेरी चाहत तेरे लिए तड़पती गई लोग पूछते रह गए मेरे दर्द की वजह मेरी आँखें उन्हे बेवफा कहती गई......!! (मानवेन्द्र की कलम से)
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कितने नासमझ हो तुम इस दिल की किताब को पढ़ नही सकते पर कितने लाजवाब हो तुम बिना तुम्हारे अब हम जी नही सकते.....!! (मानवेन्द्र की कलम से)
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ये आशु भी अजब है तेरी मोह्हबत में तेरे दामन उठने से पहले ये खुद गिर जाते है.....!! (मानवेन्द्र की कलम से)
4 Love
एहसासों में हो तुम यू बार बार जिक्र क्या करूँ हर अमानतों में मांग रखा है सनम तुम्हे तू ही बता इस अकेले दिल का क्या करूँ.....!! (मानवेन्द्र की कलम से)
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