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थक गए है उलझनों की लहरों में तैरते - तैरते.. बस अब सुकून से बहना चाहते हैं..।। खूब कुरेदे है घाव अपनो ने.. अब हर ज़ख्म भरना चाहते हैं..।। खामोश कर दिया है बातूनी दिल को भी.. अब बस चुप से रहना चाहते हैं..।।। ©Pallavi Das
Pallavi Das
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आईना वक्त का आईना महफिल बन जाता हैं.. बदलते मिजाज़ के किस्से सुनाता हैं..।। ©Pallavi Das
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किताबों का इश्क़ लुभाता क्यों हैं.. समंदर किनारों को छोड़ जाता क्यों हैं..।। जब जाना ही हो मांझी संग... तो कश्ती को साहिल संग मिलाता ही क्यों हैं..।।। - Pallavi Das
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