#mohabbatein
जीने के लिए चाहा था तुम्हें, तुम्हें चाहने के लिए जीने लगे अब।
सांसें वस्ल से पहले थम भी जाए, फिक्र कहां.. इस बात की अब।
इस जिंदगी से आस नहीं कुछ, बस..अगली तुम्हारे साथ दे रब।
चांद..सगुन में लेके आऊंगा, उनसे रिश्ते की बात बने जब।
तारों से बारात सजेगी, जुगनू - भंवरे नाचेंगे सब।
रोज़ रोज़ तुम रूठो, रोज़ रोज़ मना लूँ..
राहत का शेर समझा है क्या ?
होंठो से लगाऊं तो वाह..चुभ जाऊँ तो आह..
गुलाब का पेड़ समझा है क्या ?
कात लेती हो मुहब्बत.. सूता सूता..रूह से मेरी
गड़ेरिये का भेड़ समझा है क्या?
किसी की तलब को तलवार कहना अच्छा नहीं है
मोहब्बत करने वालों को इनकार कहना अच्छा नहीं है।
आशिक़ भी है उसी क़तार में जहां शहंशाह है पड़ा,
इश्क़ और शराब को बेकार कहना अच्छा नहीं है।
किसी की तलब को तलवार कहना अच्छा नहीं है।।
जिसे लफ़्ज़ों में उतारा है..गवारों ने,गज़लकारों ने
उसे खिड़की से प्यार कहना अच्छा नहीं है।
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