ओ अजनबी कौन हो तुम
जो इस कदर मेरे दिल दिमाग पर छाए हो
कहीं भी जाऊं या कही भी रहूं,
ऐसा क्यों लग रहा है, जैसे तुम मुझमे समाए हो
ऐसा तो पहले कभी नही हुआ,
ऐसे एहसास ने कभी मुझे इस कदर न छुआ,
खो जाती हूँ अक्सर तेरे खयालों में,
उलझ जाती हूँ अक्सर अपने ही सवालों में,
जबसे देखा है और तुझे जाना है
ऐसा क्यों लगता है तू कुछ जाना पहचाना है
क्यों तेरा ख्याल दिल से अब न जाता है
क्या मुझसे तेरा पिछले जन्म का कोई नाता है
जब तक न देखूं मेरा दिल चैन न पाता है
सुनकर तेरी आवाज न जाने मुझे क्या हो जाता है
इस कदर से तू शामिल है मेरी ज़िंदगी में
मेरा रोम रोम नाम तेरा लेता है
मेरी सांसों में शोर तेरा सुनाई देता है
इन आँखों को तेरा इंतजार रहता है
तू मेरा है या किसी और की अमानत है
जानती नही हूँ इस सवाल का जवाब
फिर भी क्यों दिल को तेरी चाहत है
जब तू आता है मेरे करीब
न जाने कैसा अजीब सा पूरे बदन में होता है
जैसे गरम लोहे को कोई सीतल जल में भिगोता है
करके प्रेम का इज़हार तूने की है
मेरी मुश्किलें आसान
मेरे भी दिल में,तेरे लिए कुछ पिघलता जाता है
दिखाये है ख्वाब जो तूने मुझे इतने हँसी
डर जाती हूँ सोच के कहीं टूट न जाएं ये सभी
प्यार जो खुद में मुकम्मल हुआ नही कभी
रह तो न जाऊंगी अधूरी मैं इस सफर में कहीं
थामा है जो मेरा हाथ,तो इसे फिर कभी न छोड़ देना
मेरी कोमल हसरतों को यूँ न तोड़ देना
उस अजनबी ने मेरे दिल को कर लिया है अपने काबू में
भूलना भी अगर चाहूं तो हूँ नही अपने बस में
उंगलियां जब से तूने, मेरे जिस्म में गड़ाई हैं
खुशबू तेरे तन की, मेरी देह में समाई है
काँपते अधरों को छुआ है, जब से तूने
एक चिंगारी सी पूरे तन-बदन में लगाई है
मिलन की विरहा में मेरा तन सुलगता है
तुझ पर खुद को लुटा दूं दिल यही फरियाद करता है
पर न जाने क्या सोच के मेरा दिल ठहर सा जाता है
क्या सही है,क्या गलत है
प्यार में किसने जाना है
हर किसी की ज़िंदगी में
एक न एक फसाना है
करती हूँ दुआ उस रब से
अगर, तू मेरी मन्नतों का सिला है
अगर,तू मुझे बड़े नसीब से मिला है
तो छूटे न कभी मेरे हाथ से तेरा हाथ
हर जन्म में मिले, मुझे मेरे प्रिय का साथ....
हर जन्म में मिले, मुझे मेरे प्रिय का साथ...
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