आंख भरे होंगे आशु से , फिर से बेटियां रोई होंगी
फिर सहमी होंगी वो ,फिर डर की दुनिया में खोई होगी
पहले दूजो से खतरा था , शायद अब खुद से डरती होंगी
खुद का सम्मान बचाने को शायद वो खुद से लड़ती होंगी
मन दुविधा से संचित होगा किसको सम्मान का ढाल कहे वो
जब साथी ही उसके खिलाफ हो गैरो को क्या काल कहे वो
क्रूर हां कलयुग में किस पर ज़रा सा भी विश्वास करें वो
जब हर तरफ अपने साथियों से ही धोखे का आभास करें वो
हम तुम सोच नही सकते उनके मन में क्या भाव होंगे
पिछले कल और अगले कल में हां कितने बदलाव होंगे
किस डर भय और किस पीड़ा में वो हर पल मरती होंगी
पर इतना तय है अब बाहर आने से भी डरती होंगी
भले वक्त के साथ उनके मन भाव में बदलाव होगा
पर इतना तय है जीवनभर उनके दिल में ये घाव होगा
©Anurag kumar singh
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