दिल बोली बोल रहा है:
प्यासा कबुतर का
गला खोटकर
कत्ल करनेवाले
कौन है ?
तुम्हे तो शर्म लाजमी थी
बंजारी झोपड़ी के बाहर
धूप को ही बदन पर ढाके हुये
रेन्गते भूख भटक रही थी
शिकायत करने की भी पुरसत कहाँ ।
पसीना बहा कर थक गए
अलफ़ाज़ यहां ।
नफरतों का धुआं बनकर ,
खून की आग में
रोटियां सेंक रहे है,
जिंदगी हैरान हैं
बाजार में बाजा शोर कर रहा है ,
मासूमों की आवाज न दब जाए।
भारत माता ,
अँधेरे रास्ते मे
रोशनदान के नीचे
इंतज़ार में है
थामकर तिरंगा ।
अगर मुमकिन है तो
तुम भी आ सकते हो ।
पर्चा एक तरफ़ा ही छापना
गरीब के बच्चों को हिसाब लिखना है ,
छोटी बहन की गंदगी साफ़ करना है ।
बढते फासले, दरारें ,
रंजिशें देख कर
मुस्कुराते गांदी
याद आ रहे हैं ।
दिल बोली बोल रहा है
सब को सन्मति दे......
सब को सन्मति दे ....
कन्नड़ मूल: सुमित मेत्रि
अनुवाद: सदाम ककनोडी
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