के मेरी लफ्जों की स्याही बयान हुई
है इस कागज़ पे...
यह मेरी तमी के जो रंग...
बिखेरे गए हैं मुझ पे
तुम्हारे मृषा के कदम हजारों है इस पे...
_रिटन बाय अंजली
मेरी सुबह को चुरा कर तुम्हारी रात हुई है ज़माना इसमें आग और कहां पानी की बरसात हुई है
मेरी छोटी सी मुस्कान सहने की क्षमता न हुई और तुमने दर्द को सहने की बात की है ज़माना इसमें आग और कहां पानी की बरसात हुई है
मुझे नीचे गिराने की हर एक कोशिश में तुम दिल में चुभ जाए ऐसी तीर निशान की है ज़माना इसमें आग और कहां पानी की बरसात हुई है
स्याही चलाओ चाहे कितनी भी मगर दिल की स्याही तो खून की है जमाना इसमें आग और कहां पानी की बरसात हुई है
_अंजली
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