Sanjeev Singh

Sanjeev Singh Lives in New Delhi, Delhi, India

Writer:Author:Poet

https://www.amazon.in/Zindagi-Ek-Kitab-Sanjeev-Singh/dp/8194678390/ref=sr_1_1?keywords=978-81-946783-9-7&qid=1599207398&sr=8-1

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#poetrybysanjeevsingh #शायरी #sanjeevsingh #WaahBhaiWaah #muktak  हर शहर गाँव में बस अमन चाहिए। 
स्वर्ण सा फ़िर हमें वो वतन चाहिए। 

ऐसा होना तो कोई भी मुश्क़िल नहीं, 
हम सभी का ज़रा सा जतन चाहिए।

©Sanjeev Singh
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गुमनाम रहने दो -------------------- इश्क़ के बाज़ार में मुझको, बे-नाम रहने दो । मुहब्बत की गलियों में मुझे, गुमनाम रहने दो । इश्क़ का इल्म रखने वाले, बहुत ख़ास हुए , मुझे इसकी तालीम नहीं, मुझे आम रहने दो । तुम मुझे यूँ ही छोड़कर, जा सकते हो कहीं , वो सुबह तुम्हारी हुई, मुझको शाम रहने दो । मुहब्बत का गुनाह तो दोनों ने किया मगर , तुम्हें बरी करता हूँ, मुझपर इल्ज़ाम रहने दो । तुम चाहो तो ये पूरा मयखाना, तुम रख लो , मुझे आँखों से नशा होता है, जाम रहने दो । मुझको इन मज़हबी जंगलों में मत घसीटो , मुझमें अल्लाह, यीशु, गुरू और राम रहने दो । संजीव सिंह ©Sanjeev Singh

#poetrybysanjeevsingh #sanjeevsinghsuman #कविता #kumarsanjeev #darkness  गुमनाम रहने दो 
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इश्क़ के बाज़ार में मुझको, बे-नाम रहने दो ।
मुहब्बत की गलियों में मुझे, गुमनाम रहने दो ।

इश्क़ का इल्म रखने वाले, बहुत ख़ास हुए ,
मुझे इसकी तालीम नहीं, मुझे आम रहने दो ।

तुम मुझे यूँ ही छोड़कर, जा सकते हो कहीं ,
वो सुबह तुम्हारी हुई, मुझको शाम रहने दो ।

मुहब्बत का गुनाह तो दोनों ने किया मगर ,
तुम्हें बरी करता हूँ, मुझपर इल्ज़ाम रहने दो ।

तुम चाहो तो ये पूरा मयखाना, तुम रख लो ,
मुझे आँखों से नशा होता है, जाम रहने दो ।

मुझको इन मज़हबी जंगलों में मत घसीटो ,
मुझमें अल्लाह, यीशु, गुरू और राम रहने दो ।

संजीव सिंह

©Sanjeev Singh

ज़लालत  क्या होती है, पीकदान से पूछ लो । दबे कुचले का एहसास, पायदान से पूछ लो । दुश्मनी कितनी है,तलवार की म्यान से पूछ लो, दोस्ती  कितनी है, अपने  बलिदान से पूछ लो । महलों के अमीरज़ादे क्या समझेंगे ग़रीबी को, मुफ़लिसी क्या होती है, टूटे मकान से पूछ लो । हम ख़ुशकिस्मत हैं, जो हमारे परिवार साथ हैं , अपनों की कमी, सरहद के जवान से पूछ लो । "पैरों की धूल के बराबर भी नहीं", सुना है ना ! तलवों का सम्मान, जूते की दुकान से पूछ लो । किसी की ज़िन्दगी से अँधेरा, कैसे मिटाते हैं , नहीं मालूम तो जाकर, रौशनदान से पूछ लो । कल की परवाह क्यों करते रहते हो, साहब, भविष्य में क्या होना है, वर्तमान से पूछ लो । हमेशा जिंदा रहने की ख़्वाहिश रखते हो क्या? दो गज़ ज़मीन की कीमत, श्मशान से पूछ लो । ©Sanjeev Singh

#poetrybysanjeevsingh #शायरी #Night  ज़लालत  क्या होती है, पीकदान से पूछ लो ।
दबे कुचले का एहसास, पायदान से पूछ लो । 

दुश्मनी कितनी है,तलवार की म्यान से पूछ लो,
दोस्ती  कितनी है, अपने  बलिदान से पूछ लो ।

महलों के अमीरज़ादे क्या समझेंगे ग़रीबी को, 
मुफ़लिसी क्या होती है, टूटे मकान से पूछ लो ।

हम ख़ुशकिस्मत हैं, जो हमारे परिवार साथ हैं ,
अपनों की कमी, सरहद के जवान से पूछ लो ।

"पैरों की धूल के बराबर भी नहीं", सुना है ना !
तलवों का सम्मान, जूते की दुकान से पूछ लो ।

किसी की ज़िन्दगी से अँधेरा, कैसे मिटाते हैं ,
नहीं मालूम तो जाकर, रौशनदान से पूछ लो ।

कल की परवाह क्यों करते रहते हो, साहब, 
भविष्य में क्या होना है, वर्तमान से पूछ लो ।

हमेशा जिंदा रहने की ख़्वाहिश रखते हो क्या?
दो गज़ ज़मीन की कीमत, श्मशान से पूछ लो ।

©Sanjeev Singh
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