घर घर आग लगाते हम ही और बुझाते हमी यहां
गद्दारी है भरी पड़ी , क्या आतंकी की कमी यहां
कोई कुछ भी बोल रहा है जज्बातों से खेल रहा
अपराधी कोई और यहां है दण्ड दूसरा झेल रहा
फूट , रंजिशे भरी पड़ी , ये कैसा भाई चारा है
बर्बरता से धोखे से , भाई को किसने मारा है
जब अपनों के द्वारा अपने मान का मर्दन हो जाए
वो कैसा भाईचारा जिसमें , भाई दुश्मन हो जाए
कौन यहां पर है जिसने सीने में खंजर घोप दिया
दंगों की अग्नि में हमको , सरेआम यूं झोंक दिया
क्या भूल गए हम भारत मां के बेटों के बलिदानों को
क्या भूल गए अब्दुल हमीद के सारे ही अरमानों को
क्या मोल चुका सकते हो अपनी पुण्यमयी माटी का
कौन रखेगा मान यहां पे , वीरों की परिपाटी का
क्या देशभक्ति थी ढोंग तुम्हारी दिल में जो थी जागी
जो दिया है मां ने तुमको क्या वो भारत माता मांगी
ये धरती अपनी मां हैं प्यारे , बोझ तुम्हारा ढोती है
महसूस तुम्हें न हो लेकिन पर कष्ट इसे भी होती है
जब मां के दो बेटे आपस में खून खराबा करते हैं
तो मानों या ना मानों लेकिन भारत मां भी रोती है
©Shyam Pratap Singh
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