खोलकर अपना सफ़ीना, मैं भँवर में आ चुका हूँ
मंज़िलों रास्ता निहारो, अब सफ़र में आ चुका हूँ
ख़ौफ़ हो उनको कि जिनकी उम्र गुजरी साहिलों पर
मैं लहर का ही जना था, मैं लहर में आ चुका हूँ
मुझको धक्का देने वालों को यही अफ़सोस है
मैं सफलता साथ लेकर, फिर में खबर आ चुका हूँ
साहिलों पर था तो मैं महरूम था पहचान से
जूझ कर लहरों से मैं सबकी नजर में आ चुका हूँ
कृष्ण हों जब सारथी अर्जुन भला क्यूँ ख़ौफ़ खाए
'श्याम' को मैं साथ लेकर इस समर में आ चुका हूँ
©Shubham Shyam
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