Deepak Chandra

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"मैं मुसाफिर हूँ नया नया इस शहर में कुफ़्र का पुतला जला कर आया हूँ दोपहर में" ऐसी कहीं रचनायें मेरी जुड़े रहिये 😊🙏🏼

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#poem

माँ poem by दीपक चंद्र

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साल गुजर गया देखो कौन मुस्कुरा रहा है खात्मा तो छोड़ो छटपटा भी नही रहा है नए साल की दावत वो भी मना रहा है कोने में बैठा कोरोना चखना खा रहा है ~दीपक चंद्र~ ©Deepak Chandra

 साल गुजर गया देखो कौन मुस्कुरा रहा है
खात्मा तो छोड़ो छटपटा भी नही रहा है
नए साल की दावत वो भी मना रहा है
कोने में बैठा कोरोना चखना खा रहा है
~दीपक चंद्र~

©Deepak Chandra

इंस्टा आई डी -dpkchandra322

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इस शहर की धूप को कौन चुराकर ले गया पता करो दया कोई दीया जलाकर छोड़ गया रसोड़े में कौन था जो आधी रात में घुस गया Dr सालुंखे से पूछो ये बासी कबका रह गया 😂😂🤣🤣 -Deepak Chandra

#GoodMorning #CityEvening  इस शहर की धूप को कौन चुराकर ले गया
पता करो दया कोई दीया जलाकर छोड़ गया
रसोड़े में कौन था जो आधी रात में घुस गया
Dr सालुंखे से पूछो ये बासी कबका रह गया
😂😂🤣🤣
-Deepak Chandra
#HappyTeachersday #Dreams

#HappyTeachersday poem by Deepak Chandra #Dreams

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#"मोहब्बत की डिग्रियां बेहिसाब हो गई" poem by Deepak Chandra

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#mohabbatein

तबीयत का बहाना poem by Deepak Chandra #mohabbatein

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