"वो लड़का था...मगर उसे घर छोड़ना पड़ा "
ख्वाहिसे अधूरी ही रह गई है जिंदगी में,
वो खुद में ही उलझता रह गया
इस भुलभुलैया के बंदगी में.....।
देखता मस्ती में मुस्कुराते काफिलों को ,
मानो महसूस कर रहा हो,
बचपन के उन पलों को ,
अपनी ही खुशियां अपनो के खातिर मार रहा है,
वो जिमेदारियों के बौझ तले दबता चला जा रहा है...।
रात मे थक हार कर आता,
आकर बेतहाशा नींद में सो जाता।
न खाने का,न पीने का,
न सोने का, न जागने का,
होश होता तो सिर्फ पैसे कमाने का।
पैसा कमाना शौक नहीं है जिंदगी का ,
वो तो जरूरत है जिंदगी गुजारने का.....।
कभी देखे ख्वाहिसो के ढ़ेरों अरमां,
कभी न कभी पूरे होंगे ये सपनों के जहां।
वक्त की करवट, सपनों के आशियाने,
एक पल में ओझल होते जा रहे है ये परवाने.....।
अरसा बीत गया अपनों की खुशियों में शामिल हुए,
आयना तरस गया उसकी मुस्कुराहट देखने के लिए ।
उम्र ऐसे ढली कि शौक यादों के पन्नों में सिमट से गए,
जी हां वो लड़का था उसे निकलना ही पड़ा कमाने के लिए.....।
@sukoon ✍️
©Deepu bhatt
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