कैसे आज रंग दूं उसको
जिसको छूने से डरता हूं
दर्पण में खिला है चेहरा उसका
छू के दर्पण,रंग दूं उसको ।
उसने हर होली रंग लगाया
पिचकारी से मुझे भिगाया
दिन-भर हमको सताया
कैसे आज छोड़ दूं उसको
छू के तस्वीर,रंग दूं उसको ।
रंग अबीर-गुलाल मैं लेके
सपनों के सागर में उसे मिलाया
जितने दर्द है अश्क पिलाया
आया वह जब ख्वाब में मिलने
कैसे आज छोड़ दूं उसको
छू के ख्वाब में,रंग दूं उसको ।
थोड़ा सा भांग मैं लेके
क्षीर के सागर में उसे मिलाया
मस्ती के दो चार घुट्टी उसे पिलाया
फागुन के मौसम मे कैसे छोड़ दूं उसको
गुलाल उड़ा के,रंग दू उसको ।
- आर.डिम्पल
©Raushan Dimple
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