लिखते थे जिसके लिए
उसने पढ़ना छोड़ दिया हैं
मौसम ही है कुछ ऐसा
उसने, घर से निकलना छोड़ दिया हैं
वफ़ा की उम्मीद अब किस से करें 'राठौड़'
है इश्क़ , जताना छोड़ दिया हैं
मुझमें ही अल्लाह मुझमें ही राम हैं
खुशियां मिलते ही सबने
इबादत करना छोड़ दिया हैं
अब अक्सर मैं खो जाता हूँ खुद में ही
मुझसे भी अब मैंने मिलना छोड़ दिया हैं !
©HS Rathore
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