पापा ...आज गुस्सा होगे ना मुझ पर...
ना फोन किया... ना ही विश
ना ही आजकल के बच्चों जैसे केक ले आई मैं ..
जानते हो ..क्यों किया मैंने ऐसा ??
क्योंकि मैं नहीं मानती
माँ पापा के नाम हो सकता है कोई एक खास दिन
यह नहीं कहती पहले कभी नहीं यह दिन
मनाया मैने आपके संग...
पर हां उस समय बच्ची थी, सोच बचकाना थी ...
आप कहते थे ना, जब बच्चे खुद मां बाप बन जाते हैं
तब जानने लगते हैं उनकी अहमियत
तो हां ...अब जानने लगी हूं अहमियत आप दोनो की...
इस एक दिन क्या मैं आप की खूबियों का
आपके किए गए बलिदानों का बखान करूं
मेरा तो हर दिन, हर पल, हर क्षण, हर श्वास
आपकी कर्जदार है व रहेगी
यह एक दिन मनाकर बाकी तीन सौ चौसठ दिनो को
रुसवा नहीं कर सकती ..पापा जब तक मैं जीवित हूं
मेरे लिए हर घड़ी मातृ पितृ दिवस है।
प्रिया
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