CA Sandeep Dwivedi

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ख़्वाब देखोगे तो हमे पाओगे जब नीँद से जागोगे तो हमे पाओगे

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एक अरसा हो गया कलम थामे,  चंद पंक्तियाँ लिखना चाहता हूँ, चादर ओढ़े तारों की,  नीचे आसमाँ के बैठना चाहता हूँ भीगी रोशनी में दीये के सहारे,  अंधियारा काटना चाहता हूँ कोरी छोड़ दी है मैंने,  अनगिनत मोड़ पे काहानी अपनी, उन क़िताबों के पन्नो में,  अल्फ़ाज़ अपने रखना चाहता हूँ वक़्त का साया ऐसा पड़ा पीछे,  रह गया सब उसके बोझ के नीचे सुनहरे शाम में एक दूजे के साथ कि, बाग़डोर संभालना चाहता हूँ यूँ तो चलती रहेगी सदा, दुनियादारी की रेल गाड़ी लंबे सफर में एक नए हमसफ़र की, भूमिका निभाना चाहता हूँ किस्से तुम शुरू करो संग तुम्हारे, उसके तमाम अंजाम देखना चाहता हूँ मैं क़िताबों के खाली पन्नों में, अल्फ़ाज अपने रखना चाहता हूँ ©CA Sandeep Dwivedi

#कविता #booklover #restart  एक अरसा हो गया कलम थामे, 

चंद पंक्तियाँ लिखना चाहता हूँ,

चादर ओढ़े तारों की, 

नीचे आसमाँ के बैठना चाहता हूँ

भीगी रोशनी में दीये के सहारे, 

अंधियारा काटना चाहता हूँ

कोरी छोड़ दी है मैंने, 

अनगिनत मोड़ पे काहानी अपनी,

उन क़िताबों के पन्नो में, 

अल्फ़ाज़ अपने रखना चाहता हूँ

वक़्त का साया ऐसा पड़ा पीछे, 

रह गया सब उसके बोझ के नीचे

सुनहरे शाम में एक दूजे के साथ कि,

बाग़डोर संभालना चाहता हूँ

यूँ तो चलती रहेगी सदा,

दुनियादारी की रेल गाड़ी

लंबे सफर में एक नए हमसफ़र की,

भूमिका निभाना चाहता हूँ

किस्से तुम शुरू करो संग तुम्हारे,

उसके तमाम अंजाम देखना चाहता हूँ

मैं क़िताबों के खाली पन्नों में,

अल्फ़ाज अपने रखना चाहता हूँ

©CA Sandeep Dwivedi
#charteredaccountant #विचार #Success #Hope #Waqt

हर पहर में हैं मेरे आदि योगी जन जन में जिये आदि योगी कण कण में बसे आदि योगी पल पल में हैं बस आदि योगी श्वांस में शुरू आदि योगी भस्म भी कहे आदि योगी अनंत का भी है आदि अंत पर वो अनंत हैं आदि योगी डमरू बजे है आये आदि योगी गंगा कल कल करे आदि योगी तुझसे ही संभव सब आदि योगी असंभव ही नहीं कुछ आदि योगी यक्ष स्वरूपा हैं आदि योगी चंद्रशेखर भी है आदि योगी गौरापति हैं मेरे आदि योगी सत-सत है नमन तुझे हे आदि योगी

#mahashivratri #aadiyogi #worship #Shiva  हर पहर में हैं मेरे आदि योगी
जन जन में जिये आदि योगी
कण कण में बसे आदि योगी
पल पल में हैं बस आदि योगी

श्वांस में शुरू आदि योगी
भस्म भी कहे आदि योगी
अनंत का भी है आदि अंत
पर वो अनंत हैं आदि योगी

डमरू बजे है आये आदि योगी
गंगा कल कल करे आदि योगी
तुझसे ही संभव सब आदि योगी
असंभव ही नहीं कुछ आदि योगी

यक्ष स्वरूपा हैं आदि योगी
चंद्रशेखर भी है आदि योगी
गौरापति हैं मेरे आदि योगी
सत-सत है नमन तुझे हे आदि योगी

घर बैठे आंगन में एक दीप जला लें तमस भगाएं चार किरणे लाएं कर मन को तन को पवित्र चल सखी आज दिवाली मनालें

#soulpurification #poem  घर बैठे आंगन में एक दीप जला लें
तमस भगाएं चार किरणे लाएं
कर मन को तन को पवित्र
चल सखी आज दिवाली मनालें

सब सकुशल कहूँ , तो शायद मैं ज़िंदा नहीं सब मंगल कहूँ, तो शायद मैं ज़िंदा नहीं, नहीं दिख रहा उजियारा, छा गया घनघोर अंधेरा जाने कब निकलेगा निडर न्याय का सवेरा, बंद कर लीया नेत्र व श्रवण, हो रहा बस चीर हरण जाने कब कृष्णा आएगा कब द्रोपदी की लाज बचाएगा, देख अमङ्गल विनाशकारी डर गई हर एक नारी कब सज्जन मौन तोड़ेगा कब दुर्जन धरती छोड़ेगा, धिक्कार है मुझे इस दुर्बलता पर क्यों अहँकार है इस सज्जनता पर, होगा क्या तब मेरा सवेरा दिखेगा जब मुझे अंधेरा, रे उठ भाग खड़ा हो कर स्मरण रच दे एक और महाभारत रामायण हो ललकार तू कर हुँकार करा दे न्याय की नैया पार #Priyanka_Reddy #RIPHumanity

#RIPPriyanka_Reddy #Ashamedhumanity #priyanka_reddy #AshamedIndian #RIPHUMANITY  सब सकुशल कहूँ , तो शायद मैं ज़िंदा नहीं
सब मंगल कहूँ, तो शायद मैं ज़िंदा नहीं,
नहीं दिख रहा उजियारा, छा गया घनघोर अंधेरा
जाने कब निकलेगा निडर न्याय का सवेरा,
बंद कर लीया नेत्र व श्रवण, हो रहा बस चीर हरण
जाने कब कृष्णा आएगा
कब द्रोपदी की लाज बचाएगा,
देख अमङ्गल विनाशकारी डर गई हर एक नारी
कब सज्जन मौन तोड़ेगा
कब दुर्जन धरती छोड़ेगा,
धिक्कार है मुझे इस दुर्बलता पर
क्यों अहँकार है इस सज्जनता पर,
होगा क्या तब मेरा सवेरा
दिखेगा जब मुझे अंधेरा,
रे उठ भाग खड़ा हो कर स्मरण
रच दे एक और महाभारत रामायण
हो ललकार तू कर हुँकार
करा दे न्याय की नैया पार
#Priyanka_Reddy
#RIPHumanity

Frustration जब मनुष्य निरंतर किसी पीड़ा को सहन करता है और विवश्ता से उस पीड़ा को व्यक्त नहीं कर पाता है, तब जन्म लेता है मन में वो भाव जो उस पीड़ा से उत्पन्न कड़वाहट अपने क्रियशैली, वाच्या और मुखभाव को दूषित करता है। प्रारम्भ में उसका अनुभव पीड़ित मनुष्य को छोड़ समक्ष व्यक्ति करता है।

#frustration  Frustration जब मनुष्य निरंतर किसी पीड़ा को सहन करता है और विवश्ता से उस पीड़ा को व्यक्त नहीं कर पाता है, तब जन्म लेता है मन में वो भाव जो उस पीड़ा से उत्पन्न कड़वाहट अपने क्रियशैली, वाच्या और मुखभाव को दूषित करता है। प्रारम्भ में उसका अनुभव पीड़ित मनुष्य को छोड़ समक्ष व्यक्ति करता है।
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