एक अरसा हो गया कलम थामे,
चंद पंक्तियाँ लिखना चाहता हूँ,
चादर ओढ़े तारों की,
नीचे आसमाँ के बैठना चाहता हूँ
भीगी रोशनी में दीये के सहारे,
अंधियारा काटना चाहता हूँ
कोरी छोड़ दी है मैंने,
अनगिनत मोड़ पे काहानी अपनी,
उन क़िताबों के पन्नो में,
अल्फ़ाज़ अपने रखना चाहता हूँ
वक़्त का साया ऐसा पड़ा पीछे,
रह गया सब उसके बोझ के नीचे
सुनहरे शाम में एक दूजे के साथ कि,
बाग़डोर संभालना चाहता हूँ
यूँ तो चलती रहेगी सदा,
दुनियादारी की रेल गाड़ी
लंबे सफर में एक नए हमसफ़र की,
भूमिका निभाना चाहता हूँ
किस्से तुम शुरू करो संग तुम्हारे,
उसके तमाम अंजाम देखना चाहता हूँ
मैं क़िताबों के खाली पन्नों में,
अल्फ़ाज अपने रखना चाहता हूँ
©CA Sandeep Dwivedi
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here