तुम्हे गीत लिखूँ संगीत लिखूँ
कभी प्रीत कभी मनमीत लिखूँ
बरसो से खुद पर अटल रही
कोई ऐसी प्यारी रीत लिखूँ
तुम्हे बर्फ कहुँ तुम्हे आग लिखूं
कभी सेहरा तो कभी बाग लिखूँ
मरु मे भी दरिया बह आये
तुम्हे वो मल्हार का राग लिखूँ
अज्ञान कभी तुम्हे ज्ञान लिखूं
अंजान कभी ,कभी जान लिखूँ
गीता ग्रंथो से हो इतने भरे हुये
मै तुमको अपना अभिमान लिखूँ
तुम्हे काव्य लिखूँ रचना लिक्खूँ
कभी नज्म कभी नगमा लिक्खूँ
इन उपमाओ का इतना ढेर भला क्यूँ
मै अन्तिम मे तुमको अपना लिक्खूँ
I really feel sorry for myself when i realise that i can not ignore people like they do ignore me
i really feel sorry for myself when i realise that i can not treat peole around me like they do
i really feel sorry when i feel that everyone is not stupid like me when it comes to relation
i really feel sorry for myself when everyone has left the one end of relation still i am in hope
i really feel sorry when i get calls and messeges only when the need me yet i do reply without any anger
but i too get hurt when there is no reply even after blue ticks and even after so many days
नजर बस एक नजर की नज़र चाहती है
ये पागल तुम्हारी हाले खबर चाहती है
मालुम है मुझे कि मंजिल मै नही तुम्हारी
ये जीस्त बस कुछ दिनो का सफर चाहती है
मोहब्बत मे नही पाना कोई बात नई नही
जिन्दगी तुम्हे खोने के बाद का सबर चाहती है
कहा जिन्दा मै रहती हुँ तुम्हारे दूर जाने पर
साँसे अब तुम्हारे बिन चलने का बसर चाहती है
थोड़ी गुस्ताख हो जाती है नजरे देख कर तुम्हे
अब शर्म अपनी ये अपनी अदब चाहती है
सफर मे टेक आने पर जरा रुकना जरुरी है
ये सफर अब हयात का एक अज़ल चाहती है
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