चल हमराही साथ मेरे
तेरे साथ अंधेरा रौशन लगे
भूख लगी हो चाहे प्यास बढ़े
तेरे नैनो के दर्श से सब जाऊ भूल मैं।
चल हमराही दूर कहीं
राहों में कदम साथ मिले
जब थक जाऊ मैं कहीं
तू धूप में छाओ बने।
चल हमराही अंजान बन
फिर से सारी बात सुन
जो चुप हो जाऊ कहते हुए
तुझे मेरी खामोशी भी राग लगे।
चल हमराही बैठ यहां
हो अकेले पर ना हो तन्हा
जब हार जाऊ दुनिया से मैं
तू बन जा मेरी अलग दुनिया।
चल हमराही अब चलते हैं
तू मुझे मिल फिर से मिलते हैं
शिकायते भी कर लेंगे
पर पहले किस्से गढ़ते है।
Swati Bhardwaj
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