Rishi Unwal

Rishi Unwal Lives in New Delhi, Delhi, India

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कभी कभी ख्यालों और कलम की जुगलबंदी स्वतः एक रचना को जन्म दे देती है। एसी ही एक रचना दोस्तों से सांझा कर रहा हूँ। आशा है आप सबको पसंद आएगी। आज कलम फिर उठाई मैंने, जज़्वातों को कागज़ पर उकेरने को मग़र कब न जाने उन लफ़्जों ने तुम्हारी शक्ल ले ली और मुझसे सवाल कर डाला- तुम मुझे भूले तो नहीं। तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ! मेरी कलम की स्याही का हर कतरा तुम्हारे नाम के पहले हर्फ़ की याद दिलाता रहता है। काग़ज पर लिखे हर लफ़्ज़ में छिपे जज़्वातों से असल तार्रुफ़ तुमने ही तो करवाया था। जब तुम पास थीं तो लफ़्ज़ चुनने नह

कभी कभी ख्यालों और कलम की जुगलबंदी स्वतः एक रचना को जन्म दे देती है। एसी ही एक रचना दोस्तों से सांझा कर रहा हूँ। आशा है आप सबको पसंद आएगी। आज कलम फिर उठाई मैंने, जज़्वातों को कागज़ पर उकेरने को मग़र कब न जाने उन लफ़्जों ने तुम्हारी शक्ल ले ली और मुझसे सवाल कर डाला- तुम मुझे भूले तो नहीं। तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ! मेरी कलम की स्याही का हर कतरा तुम्हारे नाम के पहले हर्फ़ की याद दिलाता रहता है। काग़ज पर लिखे हर लफ़्ज़ में छिपे जज़्वातों से असल तार्रुफ़ तुमने ही तो करवाया था। जब तुम पास थीं तो लफ़्ज़ चुनने नह

6 Love

सपने कभी मरते नहीं, न ही कहीं खोते हैं। वो तो यहीं मंडराते रहते हैं तुम्हारे आस पास। कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रूप में। जैसे जल संग्रहित रहता है बादलों के बीच, और समय आने पर बारिश के रूप में सराबोर कर देता है अपनी अनुभूति से। सपने कभी मरते नहीं।

सपने कभी मरते नहीं, न ही कहीं खोते हैं। वो तो यहीं मंडराते रहते हैं तुम्हारे आस पास। कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रूप में। जैसे जल संग्रहित रहता है बादलों के बीच, और समय आने पर बारिश के रूप में सराबोर कर देता है अपनी अनुभूति से। सपने कभी मरते नहीं।

6 Love

काश कि कोई पैमाना होता हक़ीक़त का। दिल निचोड़कर रख देते उसमें हम अपना, आप खुद ही तय कर लेते कितनी कूव्वत है हममें ग़म सहने की।

 काश कि कोई पैमाना होता हक़ीक़त का।
दिल निचोड़कर रख देते उसमें हम अपना,
आप खुद ही तय कर लेते कितनी कूव्वत है हममें ग़म सहने की।

काश कि कोई पैमाना होता हक़ीक़त का। दिल निचोड़कर रख देते उसमें हम अपना, आप खुद ही तय कर लेते कितनी कूव्वत है हममें ग़म सहने की।

4 Love

नींद भी ख़ुद कहीं छिपकर सो गयी है शायद, इक मुद्दत से इन पलकों को उसकी दस्तक का इंतज़ार है।

  नींद भी ख़ुद कहीं छिपकर सो गयी है शायद,
इक मुद्दत से इन पलकों को उसकी दस्तक का इंतज़ार है।

नींद भी ख़ुद कहीं छिपकर सो गयी है शायद, इक मुद्दत से इन पलकों को उसकी दस्तक का इंतज़ार है।

7 Love

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