Divya Shekhawat.

Divya Shekhawat. Lives in Indore, Madhya Pradesh, India

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 वो मेरी माँ की माँ भी है जिसे अंजान ये दुनिया है
जो मुस्कुराती हु मै उनकी दुनिया मुस्कुराती है
जब करे कोई करे कोई मुझ पर खुस्सा वो सबको डाट लगती है

©Divya Shekhawat.

वो मेरी माँ की माँ भी है जिसे अंजान ये दुनिया है जो मुस्कुराती हु मै उनकी दुनिया मुस्कुराती है जब करे कोई करे कोई मुझ पर खुस्सा वो सबको डाट लगती है ©Divya Shekhawat.

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#कविता  मन डरता है मेरा तुम मैे से हम हों पाओगे क्या
होंगे जो मंडप पर वादे उसे निभा पओगे क्या
अंजान हु मै उस दुनिया से मुझे झल्कि देखोगे क्या
लेला मजनू के किस्से तो पडे है कही उनसे वाकीब करवाओगे क्या
मन डरता है मेरा तुम मैे से हम हों पाओगे क्या

©Divya Shekhawat.

मन डरता है मेरा तुम मैे से हम हों पाओगे क्या होंगे जो मंडप पर वादे उसे निभा पओगे क्या अंजान हु मै उस दुनिया से मुझे झल्कि देखोगे क्या लेला मजनू के किस्से तो पडे है कही उनसे वाकीब करवाओगे क्या मन डरता है मेरा तुम मैे से हम हों पाओगे क्या ©Divya Shekhawat.

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#लव  मुड़ कर भी तो देखो तूम बिन अधूरी सी लगती हु
छोड़ कर गए हो तुम जब से खुद मे ही खोई सी लगती हु

दिन को रात कहती हु और रात को दिन मान बैठी हु
तुम होते तो मै यह कहती मै वो कहती अब यही राघ जपती हु


मुड़ कर भी तो देखो तूम बिन अधूरी सी लगती हु
छोड़ कर गए हो तुम जब से खुद मे ही खोई सी लगती हु

©Divya Shekhawat.

मुड़ कर भी तो देखो तूम बिन अधूरी सी लगती हु छोड़ कर गए हो तुम जब से खुद मे ही खोई सी लगती हु दिन को रात कहती हु और रात को दिन मान बैठी हु तुम होते तो मै यह कहती मै वो कहती अब यही राघ जपती हु मुड़ कर भी तो देखो तूम बिन अधूरी सी लगती हु छोड़ कर गए हो तुम जब से खुद मे ही खोई सी लगती हु ©Divya Shekhawat.

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#कविता  यु तोह मुझे पसंद नही वो, पर जाने क्यों अपनासा लगता है
मुस्करा के बुलाह ले तो उसकी ओर खीची चली जाती हू

है तकरार की कहानियां कही भी हमारे बीच पर आये को परेशानी वो साथ लगता है
जब ना हो वो साथ मेरे अधूरी सी मै लगती हू

दूर रही वो मुझसे हर पल यह कहती हू पर दूर जाता है वो जाने क्यों उसकी तलास रही है
ना दिखे वो मुझेे तो हर मै पल गुमसुम रही हु

यु तोह मुझे पसंद नही वो, पर जाने क्यों अपनासा लगता है
मुस्करा के बुलाह ले तो उसकी ओर खीची चली जाती हू

©Divya Shekhawat.

यु तोह मुझे पसंद नही वो, पर जाने क्यों अपनासा लगता है मुस्करा के बुलाह ले तो उसकी ओर खीची चली जाती हू है तकरार की कहानियां कही भी हमारे बीच पर आये को परेशानी वो साथ लगता है जब ना हो वो साथ मेरे अधूरी सी मै लगती हू दूर रही वो मुझसे हर पल यह कहती हू पर दूर जाता है वो जाने क्यों उसकी तलास रही है ना दिखे वो मुझेे तो हर मै पल गुमसुम रही हु यु तोह मुझे पसंद नही वो, पर जाने क्यों अपनासा लगता है मुस्करा के बुलाह ले तो उसकी ओर खीची चली जाती हू ©Divya Shekhawat.

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#कविता  अब कुछ खास करना नए सिरे से शुरुवात करना है
काले अक्षर से लिखी किस्मत अब सुनेरा करना है
देते है जो ताना मुझे अब जवाब उने भी करारा देना है

©Divya Shekhawat.

अब कुछ खास करना नए सिरे से शुरुवात करना है काले अक्षर से लिखी किस्मत अब सुनेरा करना है देते है जो ताना मुझे अब जवाब उने भी करारा देना है ©Divya Shekhawat.

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#शायरी  हमें क्या मारोगे तुम हम तो आजादी के मस्ताने है 
सिर पर कफ़न बांध चले ज़िंदगी अब वतन के हवाले है

हमारी चिता से आग जलेगी कहा कहा से उसे बुझाओगे 
मिट जाएगी हस्ती तुम्हारी अब वतन में ऐसी लोह जलेंगे

©Divya Shekhawat.

हमें क्या मारोगे तुम हम तो आजादी के मस्ताने है सिर पर कफ़न बांध चले ज़िंदगी अब वतन के हवाले है हमारी चिता से आग जलेगी कहा कहा से उसे बुझाओगे मिट जाएगी हस्ती तुम्हारी अब वतन में ऐसी लोह जलेंगे ©Divya Shekhawat.

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