पागलों के घर
जिस रास्ते से होकर मैं रोज गुजरता हूं ,
कुछ दिन पहले एक विक्षिप्त पागल व्यक्ति को हाथ में कुछ लकड़ियां और पॉलिथीन वगैरह पकड़े देखा ।
हर दिन वह मुझे रास्ते में दिखाई देता और उसके हाथ में वही सब सामान होता ,एक दिन मैंने देखा उस व्यक्ति ने नेशनल हाईवे से लगकर एक बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे उन्हीं सब सामानों से अपने लिए एक छोटा सा घर बना लिया था हालांकि हम लोगों की नजर में उसे बस एक कचरों का ढेर ही कहा जा सकता है,रोज आते जाते उसकी दिनचर्या पर अनायास ही मेरी नजर चली जाती।
कुछ दिनों के बाद उसी रास्ते पर एक महिला जिसने कपड़ों के नाम पर कुछ चिथड़े ही पहने थे और उसे देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह भी मानसिक रुप से अस्वस्थ है दिखाई दी उसके हाथ में भी कुछ लकड़ियां पॉलिथीन आदि कचरा ही था ।
कुछ दिनों तक वह भी रोज ही दिखाई देने लगी रास्ते पर उसी तरह, अचानक कुछ दिनों के बाद मैंने देखा उसी पेड़ के नीचे अब दो घर बने हुए थे, बिल्कुल एक दूसरे से
लग कर मुझे बहुत हैरत हुई कि जिन लोगों को हम पागल समझते हैं उन लोगों को भी इतनी समझ तो है के हमें अपने जैसे लोगों के साथ ही रहना चाहिए इसीलिए इंसानी बस्तियों से दूर उन दो पागलों ने अपने लिए दो छोटे-छोटे घर बना ले लिए थे।
(फारूख मोहम्मद )
मो. 8770984134
©Farookh Mohammad
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here