#OpenPoetry बेबस हुँ मैं, लाचार हुँ मैं
ना जाने कितनों से परेशान हुँ मै
साँस भी नहीं ले पाती अपनी मर्जी से
ना जाने कैसी बीमारी का शिकार हुँ मैं
वो क्या कहेगा, ये क्या सोचेगा
रिश्तेदारों के तानों से अनजान हुँ मै
जी नहीं पाती जिंदगी अपनी मर्जी से
ना जाने कैसी बीमारी का शिकार हुँ मैं
इस की सुननी है, उस की माननी है
लोगो के बीच में बेज़ान हुँ मै
फैसला भी नहीं ले पाती अपनी मर्जी से
ना जाने कैसी बीमारी का शिकार हुँ
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