वो आज हमसे से मिले अंजानो की तरह,हम यूही राह बैठे ताकते रहे दीवानों की तरह...
हर निगाह में और दूर चले जाते है,वो हमसे नज़रें चुराते हैं बेईमानों की तरह...
आशू शुक्ला
पराया सा लगता हूँ तुम्हें शायद मैं कभी तो नज़रें हमसे मिलाया करो...
तुम दूर से ही छुप कर देख लिया करो मुझे यूँ हर बार नज़रअंदाज आँखो के सामने मत किया करो...
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