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एक अरसा एक जमाना जो सिख देते हैं हरपल वो किस्सा पुराना जो दब सी गई है वो हिस्सा घर घर का एक अधुरी अल्फ़ाज़ एक लम्हा सफर का
Pta hai fir Tut jayega ye sapna pr phir mujhe ye sajona hai😌🛏️ Already khelte hai log ek or khel jaaye to kya hi jayega ye dil bhi to ek khilona hai Adat ho gyi hai ab inki last me hm dost hi achhe hai ka nara ayega manjil ki talash me fir rahgir bhatakta reh jayega Pr khusi hogi kisi ke muskurane ka karan to bn payenge Already jhelte hai hm ek or dard jhel jayenge Anshu bhi nhi nikalte ab jaao jisko dard ho wo ro lena bss ab mujhe nhi rona hai Pta hai fir Tut jayega ye sapna pr phir mujhe ye sajona hai by Suraj Prakash sah ©Ek lamha Safar ka
Ek lamha Safar ka
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#BestFriend'sDay बदल गए वक्त सारे बदल गए सारे यार बोलते थे तेरे लिए जान भी हाज़िर बस तु मांग तो एक बार न जाने कहां गुम हो गए सब वक्त के बहाव में हर चमचमाती शहर ढुंढा और ढुंढा हर पुराने गांव में क्या कोई मुझसे खता हुई जो ना याद तुम हमें करते हो या कोई तुमसे गलती हुई जिससे तुम हमसे आंखें मिलाने से डरते हो चाहे बात जो भी एक बार बात करके तो देखो जो दिल में दबाए बात रखे उस बात पर लड़के तो देखो आज भी साथ तेरे खड़े रहने को हु तैयार बस बात यही है बदल गए वक्त सारे बदल गए सारे यार बोलते थे तेरे लिए जान भी हाज़िर बस तु मांग तो एक बार by Suraj Prakash sah ©Ek lamha Safar ka
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छोटी सी उमर थी छोटे से सपने उड़ना नहीं था आसमान में बस खड़ा होना था पैरों पर अपने मेहनत मैंने पुरी की बल्कि ज्यादा जीतनी जरूरी थी सोचा थोड़ा तो लोग देंगे साथ कोई तो आएगा और आगे खिंचेगा मेरा हाथ पर उल्टा हाथ कि जागह मुझे चोट दिए अपने ताने से लड़की हो ना तो डर थोड़ा जमाने से क्या करेगी सपनो का कल को ससुराल भी तो जाना है जरूरी नहीं आगे बढ़ना कहां तुझे चार लोगो को कमाकर खिलाना है सपने को धीरे धीरे लोगो ने फिर तोड़ा आगे का बची कुची कसर मां बाप ने नहीं छोड़ा फिर खुद से हार ने लगी थी जब साथ छोड़ा सबने छोटी सी उमर थी छोटे से सपने उड़ना नहीं था आसमान में बस खड़ा होना था पैरों पर अपने by Suraj Prakash sah continue in next part ......................... ©Ek lamha Safar ka
10 Love
न होगा दुबारा जो कर बैठे हम अनजाने में कर लिया महसूस हमने कितना दर्द मिलता है दिल लगाने में भागते हैं दुर उनसे पर फिर भी क्यो लगता करीब है वो मिटा देंगे लकीर भी हाथ कि अगर लकीरो में लिखा नसीब है वो न हम उनको याद आएंगे न उनको कभी हम भूल पाएंगे क्या बताएं छुपाते कितना दर्द हम बस एक पल को मुस्कुराने में क्या शिकायत करे जिंदगी से जिसने न छोड़ी कसर हमे आजमाने में न होगा दुबारा जो कर बैठे हम अनजाने में कर लिया महसूस हमने कितना दर्द मिलता है दिल लगाने में न चाह कर भी उनका हमेशा फिक्र रहता है छुपाते लब्जो को हम अपने फिर लब्ज पर उनका जिक्र रहता है उनसे दुरियों कि कोशिश हम बार बार करतें हैं हर वक्त हर पल हम खुद में खुद से लड़ते हैं खो देंगे शायद हम खुद को उनको पाने में न होगा दुबारा जो कर बैठे हम अनजाने में कर लिया महसूस हमने कितना दर्द मिलता है दिल लगाने में by suraj prakash sah ©Ek lamha Safar ka
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