कभी मन करता है
छोड़ दूं सब
और निकल पड़ूं
खुद की तलाश में
क्यूंकि मैं, मैं नहीं।
कभी मन करता है
खोल दूं जुबां
और कह दूं सब
खाली कर लूं ह्रदय
क्यूंकि अब भय नहीं।
कभी मन करता है
उड़ जाऊं कहीं
नाप लूं गगन
हौसले तो हैं इतने
पर पंख नहीं।।
कभी मन करता है
कि खो जाऊं कहीं
भूलकर सभी गम,
चाहता तो हूं
पर समय नहीं।।
कभी मन करता है
छोड़ दूं सब
और निकल पड़ूं
खुद की तलाश में
क्यूंकि मैं, मैं नहीं।
©मलंग
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