आँखों में शर्म इतनी देना कि, बुजुर्गों का मान रख पायें
सुकून उतना ही देना, जितने से जिंदगी चल जाए, औकात बस इतनी देना कि, औरों का भला हो जाए, रिश्तो में गहराई इतनी हो कि, प्यार से निभ जाए, आँखों में शर्म इतनी देना कि, बुजुर्गों का मान रख पायें, साँसे पिंजर में इतनी हों कि, बस नेक काम कर जाएँ, बाकी उम्र ले लेना कि, औरों पर बोझ न बन जाएँ.
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“वक़्त जाता रहा” नाकामियों को अपनी संवारते ही रहे हम. खंडहरों में जिंदगी तलाशते ही रहे हम. उठते रहें हैं अक्सर तूफां बीती यादों के. सुबह शाम यादों को बुहारते ही रहे हम. न की परवा किसी ने रत्तीभर भी हमारी. मारे दर्द के दिन रात कराहते ही रहे हम. अपनी मदद को कोई इक बार भी न आया.
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