रुकसत हो गया है,,राहत,,ज़माने से ज़माने को
मुददत से पड़ रहा था गम,बिछड़े किसी पुराने को
लगता है मुकम्मल दोनों की हो गई है आरजू
जमी से चला गया हैं,फ़लक पे किसी दीवाने को
,,बहुत याद आओगे राहत साहब जी,,
रुकसत हो गया है,,राहत,,ज़माने से ज़माने को
मुददत से पड़ रहा था गम,बिछड़े किसी पुराने को
लगता है मुकम्मल दोनों की हो गई है आरजू
जमी से चला गया हैं,फ़लक पे किसी दीवाने को
,,बहुत याद आओगे राहत साहब जी,,
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