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Hindi sabad ka arth#shrirammandir Extraterrestrial life Entrance examination

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White इतनी मुद्दत बा'द मिले हो किन सोचों में गुम फिरते हो इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो हर आहट से डर जाते हो तेज़ हवा ने मुझ से पूछा रेत पे क्या लिखते रहते हो काश कोई हम से भी पूछे रात गए तक क्यूँ जागे हो में दरिया से भी डरता हूँ तुम दरिया से भी गहरे हो कौन सी बात है तुम में ऐसी इतने अच्छे क्यूँ लगते हो पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था पत्थर बन कर क्या तकते हो जाओ जीत का जश्न मनाओ में झूटा हूँ तुम सच्चे हो अपने शहर के सब लोगों से मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो कहने को रहते हो दिल में फिर भी कितने दूर खड़े हो रात हमें कुछ याद नहीं था रात बहुत ही याद आए हो हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से अपनी कहो अब तुम कैसे हो 'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो जैसे हो फिर भी अच्छे हो मोहसिन ©Jitender Kumar

#shayari_challenge #urdupoetrylines #shayrioftheday #lafzo_ki_goonj #GoodMorning  White इतनी मुद्दत बा'द मिले हो
किन सोचों में गुम फिरते हो

इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो
हर आहट से डर जाते हो

तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो

काश कोई हम से भी पूछे
रात गए तक क्यूँ जागे हो

में दरिया से भी डरता हूँ
तुम दरिया से भी गहरे हो

कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यूँ लगते हो

पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था
पत्थर बन कर क्या तकते हो

जाओ जीत का जश्न मनाओ
में झूटा हूँ तुम सच्चे हो

अपने शहर के सब लोगों से
मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो

कहने को रहते हो दिल में
फिर भी कितने दूर खड़े हो

रात हमें कुछ याद नहीं था
रात बहुत ही याद आए हो

हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो

'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो
जैसे हो फिर भी अच्छे हो

मोहसिन

©Jitender Kumar

#GoodMorning इतनी मुद्दत बा'द मिले हो किन सोचों में गुम फिरते हो इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो हर आहट से डर जाते हो

11 Love

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Regret का hindi arth#election_2024 Entrance examination Extraterrestrial life

126 View

#विचार #love_shayari  White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था।

तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।"

जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे।

फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?"

लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ 

ChatGPT can make

©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे

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Hindi sabad ka arth#shrirammandir Extraterrestrial life Entrance examination

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White इतनी मुद्दत बा'द मिले हो किन सोचों में गुम फिरते हो इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो हर आहट से डर जाते हो तेज़ हवा ने मुझ से पूछा रेत पे क्या लिखते रहते हो काश कोई हम से भी पूछे रात गए तक क्यूँ जागे हो में दरिया से भी डरता हूँ तुम दरिया से भी गहरे हो कौन सी बात है तुम में ऐसी इतने अच्छे क्यूँ लगते हो पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था पत्थर बन कर क्या तकते हो जाओ जीत का जश्न मनाओ में झूटा हूँ तुम सच्चे हो अपने शहर के सब लोगों से मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो कहने को रहते हो दिल में फिर भी कितने दूर खड़े हो रात हमें कुछ याद नहीं था रात बहुत ही याद आए हो हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से अपनी कहो अब तुम कैसे हो 'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो जैसे हो फिर भी अच्छे हो मोहसिन ©Jitender Kumar

#shayari_challenge #urdupoetrylines #shayrioftheday #lafzo_ki_goonj #GoodMorning  White इतनी मुद्दत बा'द मिले हो
किन सोचों में गुम फिरते हो

इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो
हर आहट से डर जाते हो

तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो

काश कोई हम से भी पूछे
रात गए तक क्यूँ जागे हो

में दरिया से भी डरता हूँ
तुम दरिया से भी गहरे हो

कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यूँ लगते हो

पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा था
पत्थर बन कर क्या तकते हो

जाओ जीत का जश्न मनाओ
में झूटा हूँ तुम सच्चे हो

अपने शहर के सब लोगों से
मेरी ख़ातिर क्यूँ उलझे हो

कहने को रहते हो दिल में
फिर भी कितने दूर खड़े हो

रात हमें कुछ याद नहीं था
रात बहुत ही याद आए हो

हम से न पूछो हिज्र के क़िस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो

'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो
जैसे हो फिर भी अच्छे हो

मोहसिन

©Jitender Kumar

#GoodMorning इतनी मुद्दत बा'द मिले हो किन सोचों में गुम फिरते हो इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो हर आहट से डर जाते हो

11 Love

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Regret का hindi arth#election_2024 Entrance examination Extraterrestrial life

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#विचार #love_shayari  White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था।

तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।"

जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे।

फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?"

लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ 

ChatGPT can make

©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma

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