White खो गया सुकून मेरा, चैन का नामो निशान नहीं,
देखने पहुंच जाता हर सुबह, अब बाकी कोई काम नहीं...
कुछ दिन बीते, कुछ महीने, अब तलक तो साल भी,
अब नज़र तक नहीं आती, लगती क्या कमाल थी...
मोहब्बत तो अब भी है, कमबख्त इज़हार न कर पाया,
सोचा मुहब्बत है मेरी, बस देखकर हीं सुकून पाया...
सादगी कमाल का, सुंदर भी बेमिसाल थी,
प्यारी तो बहोत थी और बेशक कमाल थी....
हर रोज़ देखा मुझे, हर रोज मुस्कुराई थी,
भरने ऐहसास मुझ में, न जाने कहां से आयी थी...
आज भी जाऊँ देखने उसे, पर इंतजार में रहता हूँ,
कमबख्त ऐसी मुहब्बत हुई, आज भी प्यार में रहता हूं...
ऐहसास होता है मुझे, हर रोज वो बाग में आती है,
देख उसे मैं हंसता हूं, उसकी मुस्कराहट मुझे हँसाती है...
लोग कहें अब पागल मुझे, मैं खोया खोया रहता हूं,
इन्तेज़ार में आज भी उसके, न जागू न मैं सोता हूँ...
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©अपनी कलम से
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