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New upbed nic in 2017 18 Status, Photo, Video

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#ਪਿਆਰ #Couple #nic

#Couple #nic ਲਵ ਸ਼ਵ ਸ਼ਾਇਰੀਆਂ

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part 18

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#wishes

nic

99 View

#ರಹಸ್ಯ

nic

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पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।। ©Vijay Sonwane

#लव  पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, 
जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. 
कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, 
कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. 
अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। 
होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, 
कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, 
कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो
की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , 
क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। 
कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, 
कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। 
फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।।

©Vijay Sonwane

18+

10 Love

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पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।। ©Vijay Sonwane

#लव  पकड़कर हथेली उसने जबा से लगाई, 
जबां से लगाकर जो कलाकारी दिखाई. 
कभी जबां को लगाती वो गाल पे मेरे, 
कभी नाखूनों से खिचती खाल को मेरे. 
अपने दांतो से पकड़ती वो कान को मेरे। 
होठों से चुप कराती जुबाँ को मेरे, 
कभी उपर तो कभी नीचे जा रही थी वो, 
कतरा कतरा करके मुझको खा रही थी वो
की उसके कानों को चुमके मैं भी सब बताने लगा , 
क्या क्या भरा है मुझमे सबकुछ दिखाने लगा। 
कभी माथे से लेकर पैरो तक उसमे सैर करता, 
कभी कंधे पर अपने उसके दोनो पैर करता। 
फिर एक दूसरे को धीरे धीरे खा रहे थे हम, 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम। 
और सर्दी के मौसम मे पसीने से नहा रहे थे हम।।

©Vijay Sonwane

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