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बस्ती हो और मकान न हो।
महफिल हो और शराब न हो।
तेरे हुस्न की चर्चा रहे हर लम्हा,
फिर भी तेरा दीदार न हो।
तेरे हुस्न का जादू, जैसे नसीब का खेल,
वरना तेरे बिना महफिल भी, सुनसान हो।
तू हो पास, तो हर दिल में बहार हो,
तू जैसे रेत पर खड़ी, ख्वाबों की दीवार हो।
हर ग़ज़ल में जिक्र तेरा,
तेरे बिना हर लफ्ज़ बेकार हो।
तेरी यादों का नशा, हर लम्हा ताज़गी बक्शे,
तेरे बिना कोई जश्न, जैसे बंजर कोई बाग़ हो।
तू ही राहत, तू ही सुकून,
तेरे बिना अधूरा जैसे हर ख्वाब हो।
महफिल हो और शराब न हो,
तेरा चर्चा रहे
बस तेरा दीदार न हो।
©Navneet Thakur
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