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#Bhakti

लेटे हुए हनुमान जी

117 View

कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है , याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है , वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर लूँ , दो किनारो की तरह हम , हमारे लिए तो बस एक दुसरे का नजारा होता है .... चलो एक रात , एक एक कर तारो को ज़मी पर उतारते हैं , ये दरिया कहीं न कहीं जाकर तो सिमटता होगा , जहाँ हर बूँद छोड़ देती होगी सागर होने की उम्मीद , सोचो उस रात कैसे ठहरे हुए पानी में चांद इतराता होता है ... ©Monika Suman

#शायरी #monikabijendra #ms  कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है  ,
याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है ,
वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर लूँ ,
दो किनारो की तरह हम ,
हमारे लिए तो बस एक दुसरे का नजारा  होता है ....
चलो एक रात , एक एक कर तारो को ज़मी पर उतारते हैं ,
ये दरिया कहीं न कहीं जाकर तो सिमटता होगा ,
जहाँ हर बूँद छोड़ देती होगी   सागर होने की उम्मीद ,
सोचो उस रात कैसे ठहरे हुए पानी में चांद इतराता होता है ...

©Monika Suman

कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है , याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है , वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर

11 Love

White तपे हुए रेगिस्तान मे आज अचानक मौसम क्यों बदल गया है लगता है ये रेगिस्तान कही सरकता हुआ किसी गुलशन के नज़दीज न पहुंच गया हो आज ये गतिशील समय निरंतर चहल कदमी करते करते ठहर क्यों गया है लगता है " समय "घड़ी के रुके हुए काटो को देख सकते मे न आ गया हो ©Parasram Arora

 White तपे हुए  रेगिस्तान
 मे आज अचानक 
 मौसम क्यों बदल गया है 

लगता है ये रेगिस्तान 
कही सरकता हुआ 
किसी गुलशन के 
नज़दीज न पहुंच गया हो 


आज ये  गतिशील 
समय निरंतर 
चहल कदमी करते 
करते ठहर क्यों गया है 

लगता है " समय "घड़ी 
के रुके हुए  काटो 
को देख  सकते मे न आ गया हो

©Parasram Arora

ठहरे हुए घड़ी के कांटे

12 Love

#Videos

काम करते हुए

135 View

चालाकी से भरे हुए, मिलते सहमे डरे हुए, पैमाने भर ख़ुदग़र्ज़ी, रहते ज़िद पे अड़े हुए, देर न लगती मिटने में, पहले ही अधमरे हुए, पलकें नीची पांडव सी, फक़त शर्म से गड़े हुए, फूलों की डाली खाली, पत्तों तक हैं झरे हुए, हम भी ये बदलाव यहां, देख-देखकर बड़े हुए, भीड़ तमाशाई 'गुंजन', लोग-बाग हैं खड़े हुए, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी #कविता  चालाकी  से  भरे हुए,
मिलते  सहमे डरे हुए,

पैमाने  भर  ख़ुदग़र्ज़ी,
रहते ज़िद पे अड़े हुए,

देर न लगती मिटने में,
पहले ही  अधमरे हुए,

पलकें नीची पांडव सी,
फक़त शर्म से गड़े हुए,

फूलों की डाली खाली,
पत्तों  तक  हैं  झरे हुए,

हम भी ये बदलाव यहां,
देख-देखकर  बड़े  हुए,

भीड़  तमाशाई  'गुंजन',
लोग-बाग  हैं  खड़े हुए,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी से भरे हुए#

16 Love

#शायरी

परिवार टूटे हुए

135 View

#Bhakti

लेटे हुए हनुमान जी

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कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है , याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है , वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर लूँ , दो किनारो की तरह हम , हमारे लिए तो बस एक दुसरे का नजारा होता है .... चलो एक रात , एक एक कर तारो को ज़मी पर उतारते हैं , ये दरिया कहीं न कहीं जाकर तो सिमटता होगा , जहाँ हर बूँद छोड़ देती होगी सागर होने की उम्मीद , सोचो उस रात कैसे ठहरे हुए पानी में चांद इतराता होता है ... ©Monika Suman

#शायरी #monikabijendra #ms  कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है  ,
याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है ,
वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर लूँ ,
दो किनारो की तरह हम ,
हमारे लिए तो बस एक दुसरे का नजारा  होता है ....
चलो एक रात , एक एक कर तारो को ज़मी पर उतारते हैं ,
ये दरिया कहीं न कहीं जाकर तो सिमटता होगा ,
जहाँ हर बूँद छोड़ देती होगी   सागर होने की उम्मीद ,
सोचो उस रात कैसे ठहरे हुए पानी में चांद इतराता होता है ...

©Monika Suman

कितने कम में मेरा भी गुजारा होता है , याद जैसा कुछ याद भी नहीं बस उसके नाम का सहारा होता है , वो पास से गुजरे तो थोड़ा छु के उसे महसूस भी कर

11 Love

White तपे हुए रेगिस्तान मे आज अचानक मौसम क्यों बदल गया है लगता है ये रेगिस्तान कही सरकता हुआ किसी गुलशन के नज़दीज न पहुंच गया हो आज ये गतिशील समय निरंतर चहल कदमी करते करते ठहर क्यों गया है लगता है " समय "घड़ी के रुके हुए काटो को देख सकते मे न आ गया हो ©Parasram Arora

 White तपे हुए  रेगिस्तान
 मे आज अचानक 
 मौसम क्यों बदल गया है 

लगता है ये रेगिस्तान 
कही सरकता हुआ 
किसी गुलशन के 
नज़दीज न पहुंच गया हो 


आज ये  गतिशील 
समय निरंतर 
चहल कदमी करते 
करते ठहर क्यों गया है 

लगता है " समय "घड़ी 
के रुके हुए  काटो 
को देख  सकते मे न आ गया हो

©Parasram Arora

ठहरे हुए घड़ी के कांटे

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चालाकी से भरे हुए, मिलते सहमे डरे हुए, पैमाने भर ख़ुदग़र्ज़ी, रहते ज़िद पे अड़े हुए, देर न लगती मिटने में, पहले ही अधमरे हुए, पलकें नीची पांडव सी, फक़त शर्म से गड़े हुए, फूलों की डाली खाली, पत्तों तक हैं झरे हुए, हम भी ये बदलाव यहां, देख-देखकर बड़े हुए, भीड़ तमाशाई 'गुंजन', लोग-बाग हैं खड़े हुए, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी #कविता  चालाकी  से  भरे हुए,
मिलते  सहमे डरे हुए,

पैमाने  भर  ख़ुदग़र्ज़ी,
रहते ज़िद पे अड़े हुए,

देर न लगती मिटने में,
पहले ही  अधमरे हुए,

पलकें नीची पांडव सी,
फक़त शर्म से गड़े हुए,

फूलों की डाली खाली,
पत्तों  तक  हैं  झरे हुए,

हम भी ये बदलाव यहां,
देख-देखकर  बड़े  हुए,

भीड़  तमाशाई  'गुंजन',
लोग-बाग  हैं  खड़े हुए,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

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