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यह टिमटिमाते हुए तारे

144 View

#Bhakti

लेटे हुए हनुमान जी

162 View

#Videos

काम करते हुए

180 View

चालाकी से भरे हुए, मिलते सहमे डरे हुए, पैमाने भर ख़ुदग़र्ज़ी, रहते ज़िद पे अड़े हुए, देर न लगती मिटने में, पहले ही अधमरे हुए, पलकें नीची पांडव सी, फक़त शर्म से गड़े हुए, फूलों की डाली खाली, पत्तों तक हैं झरे हुए, हम भी ये बदलाव यहां, देख-देखकर बड़े हुए, भीड़ तमाशाई 'गुंजन', लोग-बाग हैं खड़े हुए, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी #कविता  चालाकी  से  भरे हुए,
मिलते  सहमे डरे हुए,

पैमाने  भर  ख़ुदग़र्ज़ी,
रहते ज़िद पे अड़े हुए,

देर न लगती मिटने में,
पहले ही  अधमरे हुए,

पलकें नीची पांडव सी,
फक़त शर्म से गड़े हुए,

फूलों की डाली खाली,
पत्तों  तक  हैं  झरे हुए,

हम भी ये बदलाव यहां,
देख-देखकर  बड़े  हुए,

भीड़  तमाशाई  'गुंजन',
लोग-बाग  हैं  खड़े हुए,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी से भरे हुए#

16 Love

#शायरी

परिवार टूटे हुए

180 View

हम आपस में बँटे हुए, रिश्तों से हैं कटे हुए, झुके कौन पहले सोचे, मनमर्जी पर डटे हुए, कोई नहीं बेदाग यहाँ, दामन सबके फटे हुए, ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ कहते, मन्त्र एक बस रटे हुए, दुनिया हुई दिखावे की, पीछे सब अटपटे हुए, खीरा भीतर खाने तीन, बाहर दिखते सटे हुए, ख़्वाहिश भरूँ उड़ान नई, 'गुंजन' हैं पर कटे हुए, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता  हम आपस में बँटे हुए, 
रिश्तों  से  हैं  कटे हुए, 

झुके कौन पहले सोचे, 
मनमर्जी  पर  डटे हुए, 

कोई नहीं बेदाग यहाँ, 
दामन सबके फटे हुए,

ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ कहते, 
मन्त्र एक बस  रटे हुए,

दुनिया हुई दिखावे की, 
पीछे  सब  अटपटे हुए,

खीरा भीतर खाने तीन, 
बाहर  दिखते  सटे हुए,

ख़्वाहिश भरूँ उड़ान नई, 
'गुंजन'  हैं  पर  कटे  हुए,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

#'गुंजन' हैं पर कटे हुए#

10 Love

यह टिमटिमाते हुए तारे

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#Bhakti

लेटे हुए हनुमान जी

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#Videos

काम करते हुए

180 View

चालाकी से भरे हुए, मिलते सहमे डरे हुए, पैमाने भर ख़ुदग़र्ज़ी, रहते ज़िद पे अड़े हुए, देर न लगती मिटने में, पहले ही अधमरे हुए, पलकें नीची पांडव सी, फक़त शर्म से गड़े हुए, फूलों की डाली खाली, पत्तों तक हैं झरे हुए, हम भी ये बदलाव यहां, देख-देखकर बड़े हुए, भीड़ तमाशाई 'गुंजन', लोग-बाग हैं खड़े हुए, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी #कविता  चालाकी  से  भरे हुए,
मिलते  सहमे डरे हुए,

पैमाने  भर  ख़ुदग़र्ज़ी,
रहते ज़िद पे अड़े हुए,

देर न लगती मिटने में,
पहले ही  अधमरे हुए,

पलकें नीची पांडव सी,
फक़त शर्म से गड़े हुए,

फूलों की डाली खाली,
पत्तों  तक  हैं  झरे हुए,

हम भी ये बदलाव यहां,
देख-देखकर  बड़े  हुए,

भीड़  तमाशाई  'गुंजन',
लोग-बाग  हैं  खड़े हुए,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

#चालाकी से भरे हुए#

16 Love

#शायरी

परिवार टूटे हुए

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हम आपस में बँटे हुए, रिश्तों से हैं कटे हुए, झुके कौन पहले सोचे, मनमर्जी पर डटे हुए, कोई नहीं बेदाग यहाँ, दामन सबके फटे हुए, ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ कहते, मन्त्र एक बस रटे हुए, दुनिया हुई दिखावे की, पीछे सब अटपटे हुए, खीरा भीतर खाने तीन, बाहर दिखते सटे हुए, ख़्वाहिश भरूँ उड़ान नई, 'गुंजन' हैं पर कटे हुए, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ॰प्र॰ ©Shashi Bhushan Mishra

#कविता  हम आपस में बँटे हुए, 
रिश्तों  से  हैं  कटे हुए, 

झुके कौन पहले सोचे, 
मनमर्जी  पर  डटे हुए, 

कोई नहीं बेदाग यहाँ, 
दामन सबके फटे हुए,

ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ कहते, 
मन्त्र एक बस  रटे हुए,

दुनिया हुई दिखावे की, 
पीछे  सब  अटपटे हुए,

खीरा भीतर खाने तीन, 
बाहर  दिखते  सटे हुए,

ख़्वाहिश भरूँ उड़ान नई, 
'गुंजन'  हैं  पर  कटे  हुए,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ॰प्र॰

©Shashi Bhushan Mishra

#'गुंजन' हैं पर कटे हुए#

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