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New सत्ता किंग ऑनलाइन Status, Photo, Video

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White अगर मेरे दोस्त को अंग्रेजी आती तो आज उसकी एक ऑनलाइन गर्लफ्रेंड बन जाती वो cute लिखती रही और मेरा दोस्त कुत्ते समझता रहा ©Dinesh Sharma Jind Haryana

#ऑनलाइन #कॉमेडी  White अगर मेरे दोस्त को अंग्रेजी आती तो 
आज उसकी एक ऑनलाइन गर्लफ्रेंड बन जाती
वो cute लिखती रही और मेरा दोस्त कुत्ते समझता रहा

©Dinesh Sharma Jind Haryana

#ऑनलाइन गर्लफ्रेंड

15 Love

#Videos

19 सितम्बर 2007 सिक्सर किंग..

126 View

#मोटिवेशनल #information #Educational #training

चार बेस्ट तरीके जिससे आप घर बैठे ऑनलाइन कमाई कर सकते हैं। #Educational #training #information मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स

90 View

#happy_independence_day #sandiprohila  White स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता पाने की खातिर
कितनों के दिमाग लगे शातिर

अंग्रेजों ने जब तक राज़ किया था
देशवासियों का अपने अपमान किया था

क्रांतिकारी भी जोश में थे
नेता अपने होश में थे

अंग्रेजों की सत्ता हिलाई थी
दांतों तले उंगलियां दबवाई थी

शासन अंग्रेजों का डोल गया था
धीरज उनका बोल गया था

क्रांतिकारियों से थर्राने लगे थे
नेताओं से वो घबराने लगे थे

बोरिया बिस्तरा अपना बांध लिया था
एक एक अंग्रेज देश छोड़ कर भाग लिया था

देश अपना तब आजाद हुआ
हिंदुस्तानी अपना आबाद हुआ

ध्वजारोहण तब से हुआ है
15 अगस्त विख्यात हुआ है

यह राष्ट्र दिवस हमारा है
हमको जां से प्यारा है
...........................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit

#happy_independence_day स्वतंत्रता दिवस स्वतंत्रता पाने की खातिर कितनों के दिमाग लगे शातिर अंग्रेजों ने जब तक राज़ किया था

225 View

White बस सिर्फ एक Coninsidence ही है कि उनके फ़ोन कि सिर्फ एक रिंग बजने पर ही उनकी कॉल उठ जाना और उनके मैसेज भेजने पर हमारा उसी समय ऑनलाइन रहना और हाल ही सिर्फ सेकंडो मैं रिप्लाई करना ©DILEEP RAJ AHIRWAR

#rainy_season  White बस सिर्फ एक Coninsidence ही है कि 
उनके फ़ोन कि सिर्फ एक रिंग बजने पर 
ही उनकी कॉल उठ जाना और उनके
मैसेज भेजने पर हमारा उसी समय ऑनलाइन रहना
और हाल ही सिर्फ सेकंडो मैं रिप्लाई करना

©DILEEP RAJ AHIRWAR

#rainy_season बस सिर्फ एक Coninsidence ही है कि उनके फ़ोन कि सिर्फ एक रिंग बजने पर ही उनकी कॉल उठ जाना और उनके मैसेज भेजने पर हमारा उसी सम

13 Love

White गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे । पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।। जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने । उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ..... मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में । ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।। इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में । दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव.... नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में । बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।। अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में । झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव..... दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में । क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।। बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में । ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ... बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है । भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है । हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से । आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ

9 Love

White अगर मेरे दोस्त को अंग्रेजी आती तो आज उसकी एक ऑनलाइन गर्लफ्रेंड बन जाती वो cute लिखती रही और मेरा दोस्त कुत्ते समझता रहा ©Dinesh Sharma Jind Haryana

#ऑनलाइन #कॉमेडी  White अगर मेरे दोस्त को अंग्रेजी आती तो 
आज उसकी एक ऑनलाइन गर्लफ्रेंड बन जाती
वो cute लिखती रही और मेरा दोस्त कुत्ते समझता रहा

©Dinesh Sharma Jind Haryana

#ऑनलाइन गर्लफ्रेंड

15 Love

#Videos

19 सितम्बर 2007 सिक्सर किंग..

126 View

#मोटिवेशनल #information #Educational #training

चार बेस्ट तरीके जिससे आप घर बैठे ऑनलाइन कमाई कर सकते हैं। #Educational #training #information मोटिवेशनल कोट्स फॉर स्टूडेंट्स

90 View

#happy_independence_day #sandiprohila  White स्वतंत्रता दिवस

स्वतंत्रता पाने की खातिर
कितनों के दिमाग लगे शातिर

अंग्रेजों ने जब तक राज़ किया था
देशवासियों का अपने अपमान किया था

क्रांतिकारी भी जोश में थे
नेता अपने होश में थे

अंग्रेजों की सत्ता हिलाई थी
दांतों तले उंगलियां दबवाई थी

शासन अंग्रेजों का डोल गया था
धीरज उनका बोल गया था

क्रांतिकारियों से थर्राने लगे थे
नेताओं से वो घबराने लगे थे

बोरिया बिस्तरा अपना बांध लिया था
एक एक अंग्रेज देश छोड़ कर भाग लिया था

देश अपना तब आजाद हुआ
हिंदुस्तानी अपना आबाद हुआ

ध्वजारोहण तब से हुआ है
15 अगस्त विख्यात हुआ है

यह राष्ट्र दिवस हमारा है
हमको जां से प्यारा है
...........................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit

#happy_independence_day स्वतंत्रता दिवस स्वतंत्रता पाने की खातिर कितनों के दिमाग लगे शातिर अंग्रेजों ने जब तक राज़ किया था

225 View

White बस सिर्फ एक Coninsidence ही है कि उनके फ़ोन कि सिर्फ एक रिंग बजने पर ही उनकी कॉल उठ जाना और उनके मैसेज भेजने पर हमारा उसी समय ऑनलाइन रहना और हाल ही सिर्फ सेकंडो मैं रिप्लाई करना ©DILEEP RAJ AHIRWAR

#rainy_season  White बस सिर्फ एक Coninsidence ही है कि 
उनके फ़ोन कि सिर्फ एक रिंग बजने पर 
ही उनकी कॉल उठ जाना और उनके
मैसेज भेजने पर हमारा उसी समय ऑनलाइन रहना
और हाल ही सिर्फ सेकंडो मैं रिप्लाई करना

©DILEEP RAJ AHIRWAR

#rainy_season बस सिर्फ एक Coninsidence ही है कि उनके फ़ोन कि सिर्फ एक रिंग बजने पर ही उनकी कॉल उठ जाना और उनके मैसेज भेजने पर हमारा उसी सम

13 Love

White गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे । पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।। जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने । उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ..... मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में । ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।। इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में । दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव.... नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में । बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।। अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में । झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव..... दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में । क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।। बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में । ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव ... बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है । भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है । हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से । आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

छोड़ सभी वह रिश्ते-नाते, बैठे ऊँचे आसन पे ।
पहचाने इंसान नही जो , भाषण देते जीवन पे ।।
जिसे खेलना पाप कहा था , मातु-पिता औ गुरुवर ने ।
उसी खेल का मिले प्रलोभन , सुन लो अब सरकारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव .....

मातु-पिता बिन कैसा जीवन , हमने पढ़ा किताबों में ।
ये बतलाते आकर हमको , दौलत नही हिसाबों में ।।
इनके जैसा कभी न बनना , ये तो हैं खुद्दारों में ।
दया धर्म की टाँगें टूटी , इन सबके व्यापारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव....

नंगा नाच भरे आँगन में, इनके देख घरानों में ।
बेटी बेटा झूम रहे हैं , जाने किस-किस बाहों में ।।
अपने घर को आप सँभाले, आया आज विचारों में ।
झाँक नही तू इनके घर को , पतन हुए संस्कारो से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव.....

दौड़ रहे क्यों भूखे बच्चे , तेरे इन दरबारों में ।
क्या इनको तू मान लिया है , निर्गुण औ लाचारों में ।।
बनकर दास रहे ये तेरा , करे भोग भण्डारों में ।
ऐसी सोच झलक कर आयी , जग के ठेकेदारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ...

बदलो मिलकर चाल सभी यह , प्रकृति बदलने वाली है ।
भूखे प्यासे लोगो की अब , आह निकलने वाली है ।
हमने वह आवाज सुनी है , चीखों और पुकारों से ।
आने वाले हैं हक लेने , देखो वह हथियारों से ।।
उलझ रहा है निशिदिन मानव ....

उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से ।
भाषण देते वे अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- उलझ रहा है निशिदिन मानव , जिनके नित्य विचारो से । भाषण देते बन अभिनेता , सत्ता के गलियारों से ।। उलझ रहा है निशिदिन मानव .... छोड़ सभ

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