महफिल में बैठो फक्त,
दोस्त के भेष में रकीब की भी जानकारी रखो।
मंजिल की तैयारी अधूरी न हो कभी,
हार को जीत में बदलने की कलाकारी रखो।
हुनर हो हाथों में न कोई,
खालिस कुछ कर गुजरने की खुमारी रखो।
बात करना किसीसे छोड़ें नहीं,
जो अल्फ़ाज़ असर छोड़ जाए, वो समझदारी रखो।
लफ्ज़ निकले तो वो शेर सा चमके,
शायरी में अपने दिल की अदाकारी रखो।
शायरी हो या हो कोई फिक्र-ओ-जुनून,
उसमें अपनी असल अदाकारी रखो।
कभी न भूलो अपनी राहों का इरादा,
मंजिल जो भी हो नज़र शिकारी रखो।
सपनों में रंग हो या हकीकत में कोई वीरानी,
अपने हौसलों में जीत की सवारी रखो।
जो भी करना है, वो पक्की उम्मीद की खुद्दारी रखो।
©नवनीत ठाकुर
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