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New machli kvita shayri 0 Status, Photo, Video

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कागज के टुकड़ो से इंसान की शख्सियत को आंकने वालों की समझिये नियत शायद सबको याद होंगे तुलसी, सूर, और कबीर फक्क्ड़, मस्त, मनमौजी तबके पता नहीं किसी को अमीर पैसे से बनते है, केवल पैसे वाले कागजी मित्र आज भी बाजार मे कहीं बिकता नहीं सचरित्र ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  कागज के टुकड़ो 
से इंसान की शख्सियत 
को आंकने वालों की 
समझिये नियत 
शायद सबको याद होंगे 
तुलसी, सूर, और कबीर 
फक्क्ड़, मस्त, मनमौजी 
तबके पता नहीं किसी को अमीर 
पैसे से बनते है, केवल 
पैसे वाले कागजी मित्र 
आज भी बाजार मे 
कहीं बिकता नहीं सचरित्र

©Kamlesh Kandpal

#kvita

17 Love

रूड़िया, अंधविश्वास जिसके हो आस पास मन होता उसका कमजोर जीवन से बंधी होती भय की डोर नहीं कर सकता वह तर्क वितर्क जीवन को जीता,बनाकर नर्क मुक्ति नहीं होती इतनी सुगम सरल जिसे पाने को पीना होता है गरल लेकिन जाने क्या उसे मन के दास माया के भ्रमों में ही ,जिन्हे होता विश्वास ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  रूड़िया, अंधविश्वास 
जिसके हो आस पास 
मन होता उसका कमजोर 
जीवन से बंधी होती भय की डोर 
नहीं कर सकता वह तर्क वितर्क 
जीवन  को जीता,बनाकर नर्क 
मुक्ति नहीं होती इतनी सुगम सरल 
जिसे पाने को पीना होता है गरल 
लेकिन जाने क्या उसे मन के दास 
माया के भ्रमों में ही ,जिन्हे होता विश्वास

©Kamlesh Kandpal

#kvita

15 Love

कभी घनी स्याह रात में, निहारना टिम टिम करते तारों को। ऐसा लगता है जैसे भगवान ने, लगाये हों असंख्य सीसीटीवी कैमरे। गोया ऐसा लगता हो जैसे किसी की हम पर है दृष्टी? हमें पता नहीं कि सब हो रहा है रिकार्ड इन तारों के माध्यम से हमारा अहंकार, हमारे अपराध दान दया और पुण्य भी। हम कुछ नहीं कर सकते सुदूर नभ के इन तारों का। कुछ जरूर कर सकते हैं, वह है अपना आत्मसुधार। ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  कभी घनी स्याह रात में,
 निहारना टिम टिम करते तारों को।
 ऐसा लगता है जैसे भगवान ने,
 लगाये हों असंख्य सीसीटीवी कैमरे।
 गोया ऐसा लगता हो जैसे
 किसी की हम पर है दृष्टी?
 हमें पता नहीं कि सब हो रहा है रिकार्ड
 इन तारों के माध्यम से
 हमारा अहंकार, हमारे अपराध
 दान दया और पुण्य भी।
 हम कुछ नहीं कर सकते
सुदूर नभ के इन तारों का।
 कुछ जरूर कर सकते हैं,
 वह है अपना आत्मसुधार।

©Kamlesh Kandpal

#kvita

22 Love

White भीतर सबके होता है एक शिशु, जो उल्लास से किलकारी मारने को होता है ततपर। भीतर सबके होता है एक किशोर, जो नटखट बन, शरारत करना चाहता है अक्सर। भीतर सबके होता है एक युवा, जो व्यग्र हो जाता है क्रांति की, जलाने मशाल। भीतर सबके होता है/होती है एक पति /पत्नी। जो अपनी घर रूपी गाड़ी में रोज सपने संजोते है। भीतर सबके होता है एक पड़ोसी। जो पड़ोस की दौड़ में हो जाना चाहता है शामिल। भीतर सबके होता है एक अधेड़, जो समझौता करना लेना सीख लेता अंततः भीतर सबके होता है एक वृद्ध जो समर्पित कर देना अपना जीवन प्रभु चरणों में ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  White भीतर सबके होता है एक शिशु,
जो उल्लास से किलकारी मारने को होता है ततपर।
भीतर सबके होता है एक किशोर,
जो नटखट बन, शरारत करना चाहता है अक्सर।
भीतर सबके होता है एक युवा,
जो व्यग्र हो जाता है क्रांति की, जलाने मशाल।
भीतर सबके होता है/होती है एक पति /पत्नी।
जो अपनी घर रूपी गाड़ी में रोज सपने संजोते है।
भीतर सबके होता है एक पड़ोसी।
जो पड़ोस की दौड़ में हो जाना चाहता है शामिल।
भीतर सबके होता है एक अधेड़,
जो समझौता करना लेना सीख लेता अंततः
भीतर सबके होता है एक वृद्ध
जो समर्पित कर देना अपना जीवन प्रभु चरणों में

©Kamlesh Kandpal

#kvita

16 Love

White आँखिर क्यों पैदा हो रहे है उस जमी पर, सरफिरे वहशी, पागल जहाँ पर राम कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरुनानक की शिक्षा के थे सब कायल माँ के नौ महीने का संघर्ष क्या इन्हे याद नहीं ये असुर, विध्वंसकारी यूँ करते बरबाद नहीं किसी का जीवन जब जानते माँ का मर्म इंसानियत मर गईं थी या मर गईं थी शर्म ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  White आँखिर क्यों पैदा हो
 रहे है उस जमी पर, 
सरफिरे वहशी, पागल 
जहाँ पर राम कृष्ण, बुद्ध, 
महावीर, गुरुनानक की 
शिक्षा के थे सब कायल 
माँ के नौ महीने का संघर्ष 
क्या इन्हे याद नहीं 
ये असुर, विध्वंसकारी 
यूँ करते बरबाद नहीं 
किसी का जीवन 
जब जानते माँ का मर्म 
इंसानियत मर गईं थी 
या मर गईं थी शर्म

©Kamlesh Kandpal

#kvita

16 Love

#वीडियो

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कागज के टुकड़ो से इंसान की शख्सियत को आंकने वालों की समझिये नियत शायद सबको याद होंगे तुलसी, सूर, और कबीर फक्क्ड़, मस्त, मनमौजी तबके पता नहीं किसी को अमीर पैसे से बनते है, केवल पैसे वाले कागजी मित्र आज भी बाजार मे कहीं बिकता नहीं सचरित्र ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  कागज के टुकड़ो 
से इंसान की शख्सियत 
को आंकने वालों की 
समझिये नियत 
शायद सबको याद होंगे 
तुलसी, सूर, और कबीर 
फक्क्ड़, मस्त, मनमौजी 
तबके पता नहीं किसी को अमीर 
पैसे से बनते है, केवल 
पैसे वाले कागजी मित्र 
आज भी बाजार मे 
कहीं बिकता नहीं सचरित्र

©Kamlesh Kandpal

#kvita

17 Love

रूड़िया, अंधविश्वास जिसके हो आस पास मन होता उसका कमजोर जीवन से बंधी होती भय की डोर नहीं कर सकता वह तर्क वितर्क जीवन को जीता,बनाकर नर्क मुक्ति नहीं होती इतनी सुगम सरल जिसे पाने को पीना होता है गरल लेकिन जाने क्या उसे मन के दास माया के भ्रमों में ही ,जिन्हे होता विश्वास ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  रूड़िया, अंधविश्वास 
जिसके हो आस पास 
मन होता उसका कमजोर 
जीवन से बंधी होती भय की डोर 
नहीं कर सकता वह तर्क वितर्क 
जीवन  को जीता,बनाकर नर्क 
मुक्ति नहीं होती इतनी सुगम सरल 
जिसे पाने को पीना होता है गरल 
लेकिन जाने क्या उसे मन के दास 
माया के भ्रमों में ही ,जिन्हे होता विश्वास

©Kamlesh Kandpal

#kvita

15 Love

कभी घनी स्याह रात में, निहारना टिम टिम करते तारों को। ऐसा लगता है जैसे भगवान ने, लगाये हों असंख्य सीसीटीवी कैमरे। गोया ऐसा लगता हो जैसे किसी की हम पर है दृष्टी? हमें पता नहीं कि सब हो रहा है रिकार्ड इन तारों के माध्यम से हमारा अहंकार, हमारे अपराध दान दया और पुण्य भी। हम कुछ नहीं कर सकते सुदूर नभ के इन तारों का। कुछ जरूर कर सकते हैं, वह है अपना आत्मसुधार। ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  कभी घनी स्याह रात में,
 निहारना टिम टिम करते तारों को।
 ऐसा लगता है जैसे भगवान ने,
 लगाये हों असंख्य सीसीटीवी कैमरे।
 गोया ऐसा लगता हो जैसे
 किसी की हम पर है दृष्टी?
 हमें पता नहीं कि सब हो रहा है रिकार्ड
 इन तारों के माध्यम से
 हमारा अहंकार, हमारे अपराध
 दान दया और पुण्य भी।
 हम कुछ नहीं कर सकते
सुदूर नभ के इन तारों का।
 कुछ जरूर कर सकते हैं,
 वह है अपना आत्मसुधार।

©Kamlesh Kandpal

#kvita

22 Love

White भीतर सबके होता है एक शिशु, जो उल्लास से किलकारी मारने को होता है ततपर। भीतर सबके होता है एक किशोर, जो नटखट बन, शरारत करना चाहता है अक्सर। भीतर सबके होता है एक युवा, जो व्यग्र हो जाता है क्रांति की, जलाने मशाल। भीतर सबके होता है/होती है एक पति /पत्नी। जो अपनी घर रूपी गाड़ी में रोज सपने संजोते है। भीतर सबके होता है एक पड़ोसी। जो पड़ोस की दौड़ में हो जाना चाहता है शामिल। भीतर सबके होता है एक अधेड़, जो समझौता करना लेना सीख लेता अंततः भीतर सबके होता है एक वृद्ध जो समर्पित कर देना अपना जीवन प्रभु चरणों में ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  White भीतर सबके होता है एक शिशु,
जो उल्लास से किलकारी मारने को होता है ततपर।
भीतर सबके होता है एक किशोर,
जो नटखट बन, शरारत करना चाहता है अक्सर।
भीतर सबके होता है एक युवा,
जो व्यग्र हो जाता है क्रांति की, जलाने मशाल।
भीतर सबके होता है/होती है एक पति /पत्नी।
जो अपनी घर रूपी गाड़ी में रोज सपने संजोते है।
भीतर सबके होता है एक पड़ोसी।
जो पड़ोस की दौड़ में हो जाना चाहता है शामिल।
भीतर सबके होता है एक अधेड़,
जो समझौता करना लेना सीख लेता अंततः
भीतर सबके होता है एक वृद्ध
जो समर्पित कर देना अपना जीवन प्रभु चरणों में

©Kamlesh Kandpal

#kvita

16 Love

White आँखिर क्यों पैदा हो रहे है उस जमी पर, सरफिरे वहशी, पागल जहाँ पर राम कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरुनानक की शिक्षा के थे सब कायल माँ के नौ महीने का संघर्ष क्या इन्हे याद नहीं ये असुर, विध्वंसकारी यूँ करते बरबाद नहीं किसी का जीवन जब जानते माँ का मर्म इंसानियत मर गईं थी या मर गईं थी शर्म ©Kamlesh Kandpal

#कविता #kvita  White आँखिर क्यों पैदा हो
 रहे है उस जमी पर, 
सरफिरे वहशी, पागल 
जहाँ पर राम कृष्ण, बुद्ध, 
महावीर, गुरुनानक की 
शिक्षा के थे सब कायल 
माँ के नौ महीने का संघर्ष 
क्या इन्हे याद नहीं 
ये असुर, विध्वंसकारी 
यूँ करते बरबाद नहीं 
किसी का जीवन 
जब जानते माँ का मर्म 
इंसानियत मर गईं थी 
या मर गईं थी शर्म

©Kamlesh Kandpal

#kvita

16 Love

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