White अच्छे थे वो, कच्चे घर भी,
इमारतों में, इंतजाम बहुत है!!
गाँव की गलियाँ, खाली पड़ी हैं,
शहरों में, सामान बहुत है!!
खुली हवा में, जो चैन मिलता,
बंद कमरों में, धुआँ बहुत है!!
न रिश्तों की अब, गर्मी बची है,
पर तकनीकी, सम्मान बहुत है!!
दादी-नानी की बातें छूटीं,
मोबाईल में ही ज्ञान बहुत है!!
सच्ची हंसी, कम दिखती अब,
लेकिन चेहरे पर ,नकाब बहुत है!!
सुख-सुविधाओं से घिरा इंसान,
पर दिलों में, अरमान बहुत है!!
दौड़ रही दुनिया, आगे बढ़ने को,
फिर भी जीने में, थकान बहुत है!!
सादगी की जो मिठास थी कभी,
अब दिखावे में, ईमान बहुत है!!
अकेले होते लोग भीड़ में,
फिर भी दिखते, महान बहुत है!!
*अशोक वर्मा "हमदर्द"*(कोलकाता)
©Ashok Verma "Hamdard"
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