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White *पर्यावरण* क्यू घुल गयी है अब जहर इस हवा में क्यू मर रहे है हमारे अहसास इस जहाँ में अब तो इन पेड़ों से हवा भी चल बसी है प्रदूषण से है जो जंग हमारी आपसी है न काटो अब इन्हें .. अगर ये रुठ जाएंगे न जाने ये प्रकृति क्या प्रकोप दिखलायेंगे कभी सोचा है अपने वंशजो का आपने इन्हें खूबसूरत वादियों की जगह क्या आप बस एक बंजर जमीन दे कर जाएंगे ©Instagram id @kavi_neetesh

#मोटिवेशनल #GoodMorning #Nature  White *पर्यावरण*

क्यू घुल गयी है अब जहर इस हवा में

क्यू मर रहे है हमारे अहसास इस जहाँ में

अब तो इन पेड़ों से हवा भी चल बसी है

प्रदूषण से है जो जंग हमारी आपसी है

न काटो अब इन्हें .. अगर ये रुठ जाएंगे

न जाने ये प्रकृति क्या प्रकोप दिखलायेंगे

कभी सोचा है अपने वंशजो का आपने

इन्हें खूबसूरत वादियों की जगह क्या

आप बस एक बंजर जमीन दे कर जाएंगे

©Instagram id @kavi_neetesh

#GoodMorning #Nature *पर्यावरण* क्यू घुल गयी है अब जहर इस हवा में क्यू मर रहे है हमारे अहसास इस जहाँ में अब तो इन पेड़ों से हवा भी चल बसी

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#पर्यावरण #कविता

White ये सारे देवता,,, जंगल, नदियों, पेड़ों, जानवरों, पहाड़ों.... के पास क्यों मिले???? क्यों वो कंक्रीट के साम्राज्य में अध्यात्म नहीं खोज पाए???????? ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदबित् ।। गीता : 15.1 ।। हरि ॐ ©Ram Yadav

#पर्यावरण #अध्यात्म #विचार #भारत #Krishna  White ये सारे देवता,,, 
जंगल, नदियों, पेड़ों, जानवरों, पहाड़ों....
के पास क्यों मिले????

क्यों वो कंक्रीट के साम्राज्य में अध्यात्म नहीं खोज पाए????????




ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । 
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदबित् ।। गीता : 15.1 ।।


हरि ॐ

©Ram Yadav

पर्यावरण - नई हरयाणवी रागनी  तूं कितना ए जतन लगाले बन्दे वो पल में प्रलय करता है  तूं भाज भाज कै थक लेगा, वो एक पग में योजन भरता है  तनै पेड़ अर पौधे काट काट कै, जंगल नदी उजाड़ दिए  पर्वत घाटी काट काट कै, खनिज और पत्थर काढ़ लिए उनै बाढ़ के पंजे गाड़ दिए, इब क्यूं ज्यान बचाए फिरता है  तनै सारी ए धरती बंजर करदी, मार कै खाद दवाई  खान पान सब जहरी कर दिया, जहरी ए हवा बणाई  तनै अपनी शामत आप बुलाई, वो तौल तौल कै धरता है  धरती थोथी करकै नै तनै, सारा पाणी खींच लिया  पीवण नै भी छोड़या ना तनै, आंगण बाड़ी सींच लिया  उनै दया का पंजा भींच लिया इब, बूंद बूंद नै मरता है  कई कई मंजिल भवन बणा लिए, कितै बारा कितै ठारा  पहाड़ दरकगे नदी उफणगी, तेरा कुछ ना चाल्या चारा  कदे सुनामी कदे हल्लण आरहया, फिर कुदरत से क्यूं डरता है गुरु पालेराम नै पकड़ आंगली कथना रचना सिखा दिया  के आच्छा के बुरा जगत में शीशे की ज्यूं दिखा दिया  उनै कड़वा मीठा चखा दिया वो जीवन के दुख हरता है कॉपीराइट©️आनन्द कुमार आशोधिया 2024-25 ©Anand Kumar Ashodhiya

#पर्यावरण #कविता  पर्यावरण - नई हरयाणवी रागनी 

तूं कितना ए जतन लगाले बन्दे वो पल में प्रलय करता है 
तूं भाज भाज कै थक लेगा, वो एक पग में योजन भरता है 

तनै पेड़ अर पौधे काट काट कै, जंगल नदी उजाड़ दिए 
पर्वत घाटी काट काट कै, खनिज और पत्थर काढ़ लिए
उनै बाढ़ के पंजे गाड़ दिए, इब क्यूं ज्यान बचाए फिरता है 

तनै सारी ए धरती बंजर करदी, मार कै खाद दवाई 
खान पान सब जहरी कर दिया, जहरी ए हवा बणाई 
तनै अपनी शामत आप बुलाई, वो तौल तौल कै धरता है 

धरती थोथी करकै नै तनै, सारा पाणी खींच लिया 
पीवण नै भी छोड़या ना तनै, आंगण बाड़ी सींच लिया 
उनै दया का पंजा भींच लिया इब, बूंद बूंद नै मरता है 

कई कई मंजिल भवन बणा लिए, कितै बारा कितै ठारा 
पहाड़ दरकगे नदी उफणगी, तेरा कुछ ना चाल्या चारा 
कदे सुनामी कदे हल्लण आरहया, फिर कुदरत से क्यूं डरता है

गुरु पालेराम नै पकड़ आंगली कथना रचना सिखा दिया 
के आच्छा के बुरा जगत में शीशे की ज्यूं दिखा दिया 
उनै कड़वा मीठा चखा दिया वो जीवन के दुख हरता है

कॉपीराइट©️आनन्द कुमार आशोधिया 2024-25

©Anand Kumar Ashodhiya

#पर्यावरण नई हरयाणवी रागनी पर्यावरण कविता कोश कविताएं प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता हिंदी कविता

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White *पर्यावरण* क्यू घुल गयी है अब जहर इस हवा में क्यू मर रहे है हमारे अहसास इस जहाँ में अब तो इन पेड़ों से हवा भी चल बसी है प्रदूषण से है जो जंग हमारी आपसी है न काटो अब इन्हें .. अगर ये रुठ जाएंगे न जाने ये प्रकृति क्या प्रकोप दिखलायेंगे कभी सोचा है अपने वंशजो का आपने इन्हें खूबसूरत वादियों की जगह क्या आप बस एक बंजर जमीन दे कर जाएंगे ©Instagram id @kavi_neetesh

#मोटिवेशनल #GoodMorning #Nature  White *पर्यावरण*

क्यू घुल गयी है अब जहर इस हवा में

क्यू मर रहे है हमारे अहसास इस जहाँ में

अब तो इन पेड़ों से हवा भी चल बसी है

प्रदूषण से है जो जंग हमारी आपसी है

न काटो अब इन्हें .. अगर ये रुठ जाएंगे

न जाने ये प्रकृति क्या प्रकोप दिखलायेंगे

कभी सोचा है अपने वंशजो का आपने

इन्हें खूबसूरत वादियों की जगह क्या

आप बस एक बंजर जमीन दे कर जाएंगे

©Instagram id @kavi_neetesh

#GoodMorning #Nature *पर्यावरण* क्यू घुल गयी है अब जहर इस हवा में क्यू मर रहे है हमारे अहसास इस जहाँ में अब तो इन पेड़ों से हवा भी चल बसी

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#पर्यावरण #कविता

White ये सारे देवता,,, जंगल, नदियों, पेड़ों, जानवरों, पहाड़ों.... के पास क्यों मिले???? क्यों वो कंक्रीट के साम्राज्य में अध्यात्म नहीं खोज पाए???????? ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदबित् ।। गीता : 15.1 ।। हरि ॐ ©Ram Yadav

#पर्यावरण #अध्यात्म #विचार #भारत #Krishna  White ये सारे देवता,,, 
जंगल, नदियों, पेड़ों, जानवरों, पहाड़ों....
के पास क्यों मिले????

क्यों वो कंक्रीट के साम्राज्य में अध्यात्म नहीं खोज पाए????????




ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । 
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदबित् ।। गीता : 15.1 ।।


हरि ॐ

©Ram Yadav

पर्यावरण - नई हरयाणवी रागनी  तूं कितना ए जतन लगाले बन्दे वो पल में प्रलय करता है  तूं भाज भाज कै थक लेगा, वो एक पग में योजन भरता है  तनै पेड़ अर पौधे काट काट कै, जंगल नदी उजाड़ दिए  पर्वत घाटी काट काट कै, खनिज और पत्थर काढ़ लिए उनै बाढ़ के पंजे गाड़ दिए, इब क्यूं ज्यान बचाए फिरता है  तनै सारी ए धरती बंजर करदी, मार कै खाद दवाई  खान पान सब जहरी कर दिया, जहरी ए हवा बणाई  तनै अपनी शामत आप बुलाई, वो तौल तौल कै धरता है  धरती थोथी करकै नै तनै, सारा पाणी खींच लिया  पीवण नै भी छोड़या ना तनै, आंगण बाड़ी सींच लिया  उनै दया का पंजा भींच लिया इब, बूंद बूंद नै मरता है  कई कई मंजिल भवन बणा लिए, कितै बारा कितै ठारा  पहाड़ दरकगे नदी उफणगी, तेरा कुछ ना चाल्या चारा  कदे सुनामी कदे हल्लण आरहया, फिर कुदरत से क्यूं डरता है गुरु पालेराम नै पकड़ आंगली कथना रचना सिखा दिया  के आच्छा के बुरा जगत में शीशे की ज्यूं दिखा दिया  उनै कड़वा मीठा चखा दिया वो जीवन के दुख हरता है कॉपीराइट©️आनन्द कुमार आशोधिया 2024-25 ©Anand Kumar Ashodhiya

#पर्यावरण #कविता  पर्यावरण - नई हरयाणवी रागनी 

तूं कितना ए जतन लगाले बन्दे वो पल में प्रलय करता है 
तूं भाज भाज कै थक लेगा, वो एक पग में योजन भरता है 

तनै पेड़ अर पौधे काट काट कै, जंगल नदी उजाड़ दिए 
पर्वत घाटी काट काट कै, खनिज और पत्थर काढ़ लिए
उनै बाढ़ के पंजे गाड़ दिए, इब क्यूं ज्यान बचाए फिरता है 

तनै सारी ए धरती बंजर करदी, मार कै खाद दवाई 
खान पान सब जहरी कर दिया, जहरी ए हवा बणाई 
तनै अपनी शामत आप बुलाई, वो तौल तौल कै धरता है 

धरती थोथी करकै नै तनै, सारा पाणी खींच लिया 
पीवण नै भी छोड़या ना तनै, आंगण बाड़ी सींच लिया 
उनै दया का पंजा भींच लिया इब, बूंद बूंद नै मरता है 

कई कई मंजिल भवन बणा लिए, कितै बारा कितै ठारा 
पहाड़ दरकगे नदी उफणगी, तेरा कुछ ना चाल्या चारा 
कदे सुनामी कदे हल्लण आरहया, फिर कुदरत से क्यूं डरता है

गुरु पालेराम नै पकड़ आंगली कथना रचना सिखा दिया 
के आच्छा के बुरा जगत में शीशे की ज्यूं दिखा दिया 
उनै कड़वा मीठा चखा दिया वो जीवन के दुख हरता है

कॉपीराइट©️आनन्द कुमार आशोधिया 2024-25

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#पर्यावरण नई हरयाणवी रागनी पर्यावरण कविता कोश कविताएं प्रेरणादायी कविता हिंदी कविता हिंदी कविता

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