White प्रथम गुरु मेरी माँ,जिन्होंने मुझे जन्म दिया और संस्कार देकर ,जीवन को धन्य किया ,मैं हमेशा उनकी ऋणी हूँ,वे मेरे लिए साक्षात् ईश्वर है,और मेरी गुरु भी,उन को सतसत नमन,मैंने अपने प्रथम गुरु से क्या सीखा???
माँ के बाद पिता गुरु होते हैं। मैंने पिता से क्या सीखा? देखें आज आकलन करें,,,,,
सच कहूं तो मुझमें माँ की ही प्रतिबिंब झलकती है ,,,जिंदगी में सबस ज्यादा करीब माँ से ही रहा हूँ,,इसलिए माँ से बहुत कुछ सीखने को मिला,,,
मेरे पिता दृढ़ निश्चयी है, उन्हें मोह-ममता छूते नहीं है। हर कीमत पर अपनी बात मनवाना उनकी आदत में शुमार है। घर में उनका एक छत्र राज है। माँ उनके स्वभाव को सहजता से लेती है। लेकिन घर में क्लेश ना हो इस बात से डरती भी है। हम से बात बात में कहती है कि तेरे पिता क्लेश करेंगे तो तुम थोड़ा डरो। हर पल हमें इस डर का हवाला दिया जाता है तो हमने हमारी माँ से डरना सीखा।
माँ को कभी किसी से लड़ते झगड़ते नहीं देखा वो हमेशा ठामा(दादी जी) का सम्मान करती है पापा से कभी अनावश्यक जबान नहीं लड़ाते,,,तो माँ से सीखा बड़े बुजुर्ग,महिलाओं का सम्मान करना,,,
घर में कैसा भी तूफान आ जाए लेकिन हमने अपनी माँ के आँखों में कभी आँसू नहीं देखे। ना वे हमारे सामने कभी रोयीं और ना ही अपनी हमजोलियों के सामने। जैसी परिस्थिति थी उसे वैसा ही स्वीकार कर लिया। हमने अपनी माँ से यही सीखा कि कैसी भी परिस्थिति हो आँसू बहाकर कमजोर मत बनो।
अपने दो बच्चों के लालन-पालन में कभी भी माँ ने अपेक्षाएं नहीं की। जो घर में उपलब्ध था उसी से हम दोनों भाई बहन को पाला। माँ ने हम पर कभी हाथ उठाया हो, याद नहीं पड़ता। हमने माँ से यही सीखा कि अपेक्षाएं ज्यादा मत पालो और कभी भी बच्चों पर हाथ मत उठाओ।
खाने-पीने की घर में कभी कमी नहीं रही। लेकिन माँ सादगी में ही जीती रहीं है, उसकी आवश्यकताएं सीमित है । दूध-दही, घी-बूरा, फल-मेवा जिस घर में भरे रहते हों, वहाँ कोई लालसा नहीं। वे कहती कि मुझे हरी मिर्च का एक टुकड़ा दे दो, मैं उससे ही रोटी खा लूंगी। हमने माँ से यही हरी मिर्च के साथ रोटी खाना सीखा। कोई लालसा मन में नहीं उपजी।
साल में दो साड़ी पिता लाते और एक ही मामा से मिल जाती और माँ का गुजारा आराम से हो जाता। हमने कभी उन्हें चमक-धमक वाली साड़ी में नहीं देखा। कभी जेवर से लदे नहीं देखा। हमने माँ से यही सीखा कि जितना वैभव कम हो उतना ही अच्छा।
परिस्थितियां कैसी भी हों चाहे कितनी भी बॾी गलती क्यों न हों माँ को कभी भी झुठ बोलते नहीं देखा तो माँ से सीखा झुठ न बोलना और अपनी गलती न छिपाना,,
पिता ने जीवन में कभी झूठ का सहारा नहीं लिया। वे कहते कि सत्य, सत्य है, चाहे वह कटु ही क्यों ना हो। बस सत्य ही बोलो। यह गुण हमने उनसे हूबहू सीखा। कटु सत्य से भी गुरेज नहीं रख पाये।
माँ का जीवन अनुशासन से पूर्ण है। दिनचर्या से लेकर जीवन के प्रत्येक आयाम में अनुशासन की आवश्यकता वे प्रतिपल बताते है इतना कूट-कूटकर अनुशासन उन्होंने दिया कि आज थोड़ी सी भी बेअदबी बर्दास्त नहीं होती। हमने माँ से अनुशासन सीखा। माँ की बहुत बड़ी चाहत है कि मैं वाकपटु बनूं, तार्किक बनूं। मैंने तार्किक बनने का प्रयास किया और यह गुण उनकी इच्छा से सीखा।
मैंने पिता से आवेग सीखा लेकिन उसपर शीतलता के छींटे माँ के कारण पड़ गए।
पापा कभी भी विपरीत परिस्थितियों में विचलित नहीं होते है और एक सजग सैनिक की तरह अपने परिवार की रक्षा करते हैं,खुद सीने में दर्द छिपा के,हम लोग को हंसाते है तो पापा से यही सीखने को मिला कि खुद कैसे भी रह लो लेकिन तुम पर जो आश्रित है उसको हर हाल में खुश रखो,,,,दर्द छिपा कर हंसना सीखो,,,
ऐसे ही न जाने कितने गुण-अवगुण हमने हमारे प्रथम गुरु से सीखे। आज उनके कारण जीवन सरल बन गया है।
बस माता-पिता दोनों को नमन।
©manorath
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