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#कविता #मीरा  नटवर नंद किशोर कृष्ण की,
एक भक्त हरि के चित्त की चोर।
स्वप्न में भी दर्शन की प्यासी,,
इतने तनिक प्रभु बने कठोर।।
संत परंपरा की सयानी मीरा, 
दर्द की दीवानी हुई।
कान्हा के स्वरूप की बाट जोह,,
दिया बाती की बनी है रूई।।
कृष्ण वंदना के कठिन तप में,
भक्ति की ना छोड़ी डोर।
नटवर नंद किशोर कृष्ण की,,
एक भक्त हरि के चित्त की चोर।।

©Satish Kumar Meena

#मीरा

144 View

#कविता #अपनी #विभा #करू #मन

#मन के भाव #करू मैं प्रेम मीरा सा #विभा सिंह बघेल परिवार #अपनी कविता

180 View

प्रेम है जहाँ वहाँ से कृष्ण मिलेंगे मीरा की हर दास्ताँ से कृष्ण मिलेंगे कृष्ण को है ढूँढ़ना तो राधे-राधे बोल राधिका बिना कहाँ से कृष्ण मिलेंगे ©Ghumnam Gautam

#प्रेम #ghumnamgautam #राधा #मीरा #Krishna  प्रेम है जहाँ वहाँ से कृष्ण मिलेंगे
मीरा की हर दास्ताँ से कृष्ण मिलेंगे
कृष्ण को है ढूँढ़ना तो राधे-राधे बोल
राधिका बिना कहाँ से कृष्ण मिलेंगे

©Ghumnam Gautam

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान । भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।। धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान । देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान । जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।। इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान । नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम । रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।। अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान । ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।। धरती माँ के सीने पर अब..... नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव । गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।। झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव । धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

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समस्त संसार के तुम हो स्वामी, मेरे तो हो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई। मीरा ©Heer

#मीरा  समस्त संसार के तुम हो स्वामी,
मेरे तो हो गिरिधर गोपाल,
दूसरो न कोई। 
मीरा

©Heer

#मीरा poetry quotes

16 Love

#कविता #मीरा  नटवर नंद किशोर कृष्ण की,
एक भक्त हरि के चित्त की चोर।
स्वप्न में भी दर्शन की प्यासी,,
इतने तनिक प्रभु बने कठोर।।
संत परंपरा की सयानी मीरा, 
दर्द की दीवानी हुई।
कान्हा के स्वरूप की बाट जोह,,
दिया बाती की बनी है रूई।।
कृष्ण वंदना के कठिन तप में,
भक्ति की ना छोड़ी डोर।
नटवर नंद किशोर कृष्ण की,,
एक भक्त हरि के चित्त की चोर।।

©Satish Kumar Meena

#मीरा

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#कविता #अपनी #विभा #करू #मन

#मन के भाव #करू मैं प्रेम मीरा सा #विभा सिंह बघेल परिवार #अपनी कविता

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प्रेम है जहाँ वहाँ से कृष्ण मिलेंगे मीरा की हर दास्ताँ से कृष्ण मिलेंगे कृष्ण को है ढूँढ़ना तो राधे-राधे बोल राधिका बिना कहाँ से कृष्ण मिलेंगे ©Ghumnam Gautam

#प्रेम #ghumnamgautam #राधा #मीरा #Krishna  प्रेम है जहाँ वहाँ से कृष्ण मिलेंगे
मीरा की हर दास्ताँ से कृष्ण मिलेंगे
कृष्ण को है ढूँढ़ना तो राधे-राधे बोल
राधिका बिना कहाँ से कृष्ण मिलेंगे

©Ghumnam Gautam

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान । भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।। धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान । देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान । जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।। इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान । नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम । रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।। अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान । ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।। धरती माँ के सीने पर अब..... नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव । गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।। झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव । धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।। धरती माँ के सीने पर अब.... धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  गीत :- 
धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब...

यहीं तो जन्में वीर अनेक, आल्हा उदल और मलखान ।
भूल गये हो तुम सब शायद, वीर शिवा जी औ चौहान ।।
धर्म और धरती माँ पर जो, दिए प्राण का है बलिदान ।
देख रहा मैं क्रूर काल को , जिसका होता बुरा प्रभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

वही डगर फिर से चुन लो सब , जो दिखलाये थे रसखान ।
जिसको जी कर मीरा जी ने , पाया जग में था सम्मान ।।
इसी धरा पर राम नाम का , हनुमत करते थे गुणगान ।
नहीं हुई है अब भी देरी , जला हृदय में प्रेम अलाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

निर्मल पावन गंगा कहती , यह है परशुराम का धाम ।
रूष्ट नहीं कर देना उनको , झुककर कर लो उन्हें प्रणाम ।।
अधिक बिलंब उचित क्यों करना , बढ़कर लो अब तुम संज्ञान ।
ईर्ष्या द्वेष मिटाओ जग से , पनपे हृदय प्रेम के भाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब.....

नीर नदी का सूख रहा है , आज जमा ले अपना पाँव ।
गली-गली कन्या है पीडित, भूखे ग्वाले घूमें गाँव ।।
झुलस रहें हैं राही पथ के , बता मिले कब शीतल छाँव ।
धीरे-धीरे प्रकृति सौन्दर्य  , में दिखता क्यों हमें अभाव ।।
धरती माँ के सीने पर अब....

धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव ।
नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-  धरती माँ के सीने पर अब , नहीं लगाओ फिर से घाव । नही लौट वो फिर आयेंगे , करने धरती पर बदलाव ।। धरती माँ के सीने पर अब... यहीं तो जन्

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समस्त संसार के तुम हो स्वामी, मेरे तो हो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई। मीरा ©Heer

#मीरा  समस्त संसार के तुम हो स्वामी,
मेरे तो हो गिरिधर गोपाल,
दूसरो न कोई। 
मीरा

©Heer

#मीरा poetry quotes

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