मन है एक हवा का झोंका,
उड़ने से किसने है रोका,
आसमान है ख़ुद के भीतर,
दुनिया तो केवल है धोखा,
होती है जब प्रिय कल्पना,
बिना खर्च रंग हो चोखा,
हुई आज हैरत अपनो पर,
जबसे छुरी पीठ में भोंका,
करते फिरते सब मनमानी,
बोलो किसने किस्को टोका,
बढ़ी आज रफ़्तार सड़क पे,
दुर्घटना में ठोकम ठोंका,
हुआ उजाला जब तो देखा,
पाँव पड़ा है जख़्मी फोंका,
शांति नहीं है मन में 'गुंजन',
फिर समझो सारे हैं बोका,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ॰प्र॰
©Shashi Bhushan Mishra
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