सुबह - सुबह दौर ए शराब,,वाह क्या बात है ,
गले से उतरते एक एक कतरे का हिसाब ,,वाह क्या बात है ।।
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खुद ही बारिश ,,,खुद ही आतिश,, भीगकर शराबियों को ,,फिर खुद ही जलना जनाब,,, वाह क्या बात है ।।
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खुद ही साहिल ,,खुद ही सागर ,,,खुद ही शबनम खुद ही गागर ,,और फिर खुद ही खुद को पीना बेहिसाब,,,, वाह क्या बात है ।।
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खुद ही सेहरा ,,खुद ही प्यास ,,खुद ही बंजर और फिर खुद की आस,,सुखी रेत पर बरस गया पानी जैसे ,,ऐसा मौसम खराब ,,,वाह क्या बात है ।।
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खुद की महफिल ,,खुद ही शायर,,खुद की नज्में ,,खुद की बहर ,,खुद की गज़लें,खुद के मीटर ,,और फिर खुद की तारीफें खुद से ही जनाब ,, वाह क्या बात है ।।
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खाली पड़े जिस्म में रूह की जगह तू ,,राणा ,,और तेरी जगह शराब ,,वाह क्या बात है ,, सुबह सुबह दौर ए शराब,,वाह क्या बात है ।।
©#शून्य राणा
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