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"मैं सोचा नहीं करता, कौन अर्जुन है
कौन कर्ण है, कौन एकलव्य है
मैं तो बस सबको सृजन करता हूं
शायद इस बरगद की तरह,
जो सबको छांव देता है
पर अपनी जड़ें गहरी धरती में गाड़ लेता है
हर शाख से नई उम्मीदें खिलती हैं
पर मेरे हिस्से में सूनापन ही आता है।
मैंने न कभी भेदभाव किया
न किसी से कुछ वापस मांगा
बस खुद को हर पल लुटाता रहा
ताकि वो अपनी पहचान बना सके।
कौन कितना आगे बढ़ेगा, मैं नहीं जानता
कौन किस ओर मुड़ेगा, मैं नहीं देखता
मैं तो बस बीज बोता हूं
वो पेड़ बने या फूल, ये उनका भाग्य है।
मैं किसी से उम्मीद नहीं करता
कौन लौटेगा मेरे पास
मैंने अपना धर्म निभाया है
अब उनका जीवन उनका प्रयास।
शायद इसी में मेरा सुख है
कि मेरी छांव में वो पले हैं
कभी अर्जुन बनें, कभी कर्ण
मगर मेरा हृदय हर एक में धड़कता रहेगा
©samandar Speaks
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