*शीर्षक - तथाकथित मर्द जात*
*( व्यंग )*
औरत की गलती पर जो तुमको सताते
ना समझ जो तुम्हारी ही कमियां गिनाते
ना दो ध्यान इन पर , बनो तुम विचारक
करो नाम सार्थक , ऐ ! महिला सुधारक
*तथाकथित मर्द जात , तुम्हे तरक्की मुबारक*
तुम्हारी नहीं , कोई इसमें खता है
हैं नजरें ही चंचल ,ये सबको पता है
बहक जाता मन , देख सुन्दरताई
प्रभु ने ये नेमत , की तुमको अता है
नजरें ही करवाती दुष्कृत्य विदारक
*तथाकथित मर्द जात , तुम्हे तरक्की मुबारक*
ये माथे की बिंदिया ये चूड़ी ये कंगन
सुनाई दी कानों में पायल की छन छन
तभी तो है मन से ये आवाज़ आई
मैं आगोश में लूं तो हो तृप्त तन - मन
तुच्छ भावना की, औरत ही कारक
*तथाकथित मर्द जात तुम्हे , तरक्की मुबारक*
नहीं है सलीका , रहने का इनको
समझें नहीं खुद के आगे किसी को
ना जाने ही , कैसा गुरूर है इनमें
अबला से सबला बनाया है जिन को
अच्छा किए बन , गुरूर का तारक
*तथाकथित मर्द जात , तुम्हे तरक्की मुबारक*
अश्लीलता की , हर हदें पार करतीं
नहीं धीर मन में , ये औरत ही धर्ती
स्वयं को बचाती , तुम्हे दोषी कह के
पर्दे में , आखिर ये क्यूं नहीं रहतीं ?
बनना पड़ा , तुमको इनका संहारक
*तथाकथित मर्द जात , तुम्हे तरक्की मुबारक*
कि सबसे बड़ी , खता इनकी ये है
जो गर्भ में पाली , तुम्हें आज ये है
हृदय से लगा करके सींचा तुम्हे क्यूं
मसल दो इन्हें , सजा इनकी ये है
डटे तुम रहो गर , तो बनेगा स्मारक
*तथाकथित मर्द जात , तुम्हे तरक्की मुबारक.....*
*✍️ *अपर्णा त्रिपाठी "मासूम"* ✍️
✍️ *महराजगंज ✍️**से
©मासूम
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