White जिस कर्म को करते हुए या करने के बाद मन में डर , शंका और लज्जा का अनुभव हो वह पाप है ।
जिस कर्म को करते हुए या करने के बाद मन में उमंग , उत्साह और आनन्द का अनुभव हो वह पुण्य है ।
जिस कर्म को करते हुए या करने के बाद मन मे कोई भाव न आये वह निष्काम होता है । इस प्रकार का कर्म सिर्फ वही कर सकता है जिसने अपने मन को पवित्र कर लिया है ।
इसी सिद्धान्त के आधार पर हिंदु धर्म मे हिंसा का भी स्थान है । जैसे श्रीकृष्ण और रामचन्द्र जी ने कई अधर्मियों को सजादी और मौत के घाट उतारा है । अरिहंत: अधर्म, अधर्मी का हंत करने से बड़ा पुण्य कोई नही है। अधर्मी को दंड दिए बिना छोड़ने का मतलब, वह अधर्म करता रहेगा, और उसके पाप का फल आपको भी मिलेगा।
©sanjay Kumar Mishra
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here